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है। वह दूसरों के वश में नहीं होती।'
"तो यह तुम्हारे भस्म से वशीकृत नहीं:" "बिलकुल नहीं।"
चोकी ने तरधर वामाचारी की ओर देखा। लेकिन वामाचारी ने चाकी की ओर निहाग तक नहीं।
चोकी चिल्ला हटा, ''यह जो ऋछ कहता है सब झूठ है।"
"खामोश! यह राजसमा है।' कहकर बिट्टिदेव चोकी के पास आये और बोले, ''क्या सत्य और क्या झूठ-इसे कैसे प्रकट कराना होता है. इस सभा को मालूम हैं। जब पूछा जाय तब जघाब दोग। बीच में बोने तो जीभ काट ली जाएगी। और यह भी समझ लो कि अगर झुठ बोले तो कष्ट में पड़ोगे और अन्त में सत्य बोलने के लिए विवश हो जाओगें । इसलिए इससे तो अच्छा यही है कि पहले हो सब सच-सच कह दो। तुम दानों को अभी अवसर है कि जो कुछ घटित हुआ है। से खुलकर बना टो।"
तो क्या इस स्त्री ने ओ कहा गं मन्य मानकर निर्णय लिया जा चका है।" चोकी ने पूछा।
''हमारी रीति पर प्रश्न करने की धृष्टता भी तुझमें है : रेविमम्या जाकर शस्त्रधारी ताड़कों को बुला लाओ! इसके नाक कान दवाये जाएँ तो सत्य । अपने-आप बाहर आ जाएगा। पीट पर चाबुक माग्न से यह ज़्यादा आसान है। देखनेवालों को भी अच्छा लगेगा।" बिहिदेव ने कहा।
आदेश मिलते ही शस्त्रधारी आ गये। 'हाँ, अब बाला, सच धोलांगे या सच कहलवा?"
“पीड़ा दीजिए। उसे सहन न कर यदि जो चाहें, जैसा चाहें, झूट ही बोलें, उसी को सत्य मानकर विश्वास कर लेंगे?"
“पीड़ा से बचने के लिए झूट बोले तो वह सत्य कैसे हो जाएगा? प्रत्येक पहलू से हर एक के मुंह से एक जैसा ज्ञात पड़ने पर ही सत्य का स्वरूप दिखेगा। उससे तुम्हें क्या मतलब : स्वयं प्रेरित होकर सत्य को छिपाय विना कह देना या न कहना तुम्हारी इच्छा पर है। इसके लिए तुम्हें घोड़ा-सा समय और दिया जाता है। इतने में और लोगों की भी तहकीकात करना है।' बिट्टिदेव ने कहा । फिर चट्टला की ओर देखकर बोले, ''इस सभा के सामने और भी कहने लायक बात हो तो उसे बताने के लिए अभी मौका है। जो कहना बाकी है सो सय बता दो।"
उसने पुनः अपना बयान दिया : "मेरा शील भ्रष्ट हुआ हैं यह पहले ही बता युकी हूँ। राष्ट्रभक्ति का काम मैंने जिस तरह निवाहा है, सो सब गुप्तचर चाविमय्या को मालूम हैं। बेहतर यही होगा कि वही यहाँ आकर कहे। मेरे शील
250 :: पट्टमहादेवी शान्तला : 'पाग दो