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चामब्वे की यह दशा देख एचलदेवी ने स्वयं उठकर उसकी भुजाओं पर हाथ रखकर धीरे-से लिटाते हुए कहा, "लेट जाइए, आप बहुत थक गयी हैं। यह अच्छा हुआ कि आपने खुले दिल से सब-कुछ कह दिया। राजघराने की नीति-रीति रही है-राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर, ऊँच-नीच के भेदभाव के बिना, असूयारहित होकर एक परिवार की तरह रहना। इस आदर्श के लिए सहयोग करनेवालों की आशा-आकांक्षा की पूर्ति में न्यूनता न होगी। अब दण्डनाथ जी की पत्नी चन्द्रलदेवी का बच्चा हेग्गड़ती जी के घर में उनकी प्रेमपूर्ण देखरेख में पल रहा हैं न? अपनी बेटियों की देखरेख करने के लिए आप स्वयं जल्दी ही अच्छी हो जाएँगी-ऐसा भरोसा है। आप दुनिया भर की चिन्ता न करें।"
"मुझे तो बचने की आशा नहीं।" चामब्बे ने अपनी सूखी आँखों से अपनी मालकिन की ओर निहारा।
फिर वही बात! ऐसा न कहें ।' कहकर खुद श्चलदेवी ने उठकर किवाड़ खोला । खुलने से कुछ आवाज़ हुई। भीतरी प्रकोष्ठ से उठकर सब अन्दर आ गये। तब तक पण्डितजी भी आ चुके थे। उन्हें देखकर खुद बाहर आ एचलदेवी ने कहा, "दण्टनाविका जी ने जी भरकर बातचीत की। उन्हें बात करने से रोक नहीं सकी। शान्ति से बैंठकर सुनने के सिवा कोई चारा न था। आप जग उनकी हालत देख नीजिए।
पण्डितजी और मरियाने दोनों अन्दर चले गये।
महामातृश्री को अकंली छोड़कर जाना उचित न समझकर पद्मला ने एक आसन दिखाकर उस पर बैठने के लिए निवेदन किया। एचलदेवी ने दण्डनायक जी की तीनों बेटियों को देखा। धीरे-से आसन की ओर जाकर बैट गयीं और चाली, "छोटे अप्पाजी, बैठो। पण्डितजी के आने के बाद हम चलेंगे।"
दण्डनायिका की बेटियों खड़ी ही रहीं। "तुम लोग भी बैठो, खड़ी क्यों हो।' एचलदेवी ने कहा। वे भी वहाँ चिठी दरी पर कुछ दूर पर संकोच से बैठ गयीं। ___माँ को मौन देख बिट्टिदेव ने समझा कि माँ किसी गम्भीर बात पर विचार कर रही हैं। अन्दर दोनों में क्या बातचीत हुई-जानने का उनके मन में कुतूहल जगा। फिर भी यह उचित स्थान न समझकर चुप रहे।
देकब्बे दो बार स्नानगृह में गयी और दोनों बार थाली-लोटा लायी थी जल्दी में। सबका ध्यान उसी कमरे की ओर लगा था। अन्दर से के करने की आवाज सुन पड़ी। बाद में देकच्चे होशियारी से थाली लेकर पिछवाड़े की ओर चली गयी।
तभी मरियाने कमरे से बाहर आये और बेटियों से बोले, ''बेटी, तुम लोग अन्दर जाओ, तुम्हारी मौं बुला रही है।" वे उठी और अन्दर चली गयीं।
मरियाने बाहर के प्रकोष्ठ के एक खम्बे से सटकर खड़े हो गये। बिट्टिदेव
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: :!3!!