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इसलिए पिताजी को आराम करने के लिए कहकर वे सब माँ के कमरे में आ गर्ची ।
दूसरे दिन दण्डनायिका ने अपनी इस भौतिक देह को छोड़ दिया। उसने महामातृश्री से 'बेटियों को आपकी गोद में...' कहा था सो वे ही उसके आखिरी शब्द बनकर रह गये थे। इस अवसर पर महाराज बल्लाल सहित पूरा राजपरिवार पार्थिव देह को देखने आया और श्रद्धांजलि अर्पित कर राजमहल वापस चला
गजा १
दण्डनायिका ने जब आखिरी साँस ली थी तब मरियाने और उनकी बेटियाँ वहीं उपस्थित रहे। उन्हें इस बात का समाधान रहा कि वे यहाँ अन्त तक रहे। परिवार के सदस्य तथा अन्य सभी जन वहाँ थे, इस बात का ज्ञान दण्डनायिका को अपने आखिरी क्षणों में रहा या नहीं मालूम नहीं। मृत्यु के बाद जो-जो संस्कार आदि होने चाहिए थे, तो सब विधिवत् हुए। इस मृत्यु के कारण महासभा पन्द्रह दिन के लिए स्थगित कर दी गयी।
दण्डनायिका की मृत्यु के समय हेग्गड़ती और शान्तला बिड़िया के साथ वहाँ उपस्थित रहे। प्रधानजी और उनकी पत्नी लक्कलदेवी भी वहाँ थीं। मरियाने की पहली पत्नी का पुत्र माचण और डाकरस तथा उनकी पत्नियां भी उपस्थित रहीं । इन सबके होने से दण्डनायक की बेटियों को ढाढस बँधा रहा। खासकर आत्मीया माचिकब्बे और शान्तला की उपस्थिति उनके लिए बहुत ही सहायक सिद्ध हुई ।
पद्मता और चामला को, माचिकब्बे से परिचय होने के कारण उनके प्रति और अधिक आदर और गौरव-भाव उत्पन्न हो गया। ऐसी करुणामयी के बारे में हमारी माँ ने क्यों ऐसे बुरे विचार हममें उत्पन्न किये थे? सब बातों को जानती हुई भी, क्षमाशीलता का प्रतीक बन यहाँ आकर हम सबको अपना ही मानकर हम सबकी कुशल कामना करती हुई, हमारी देखभाल करनेवाली है यह करुणामयी आदर्श माँ । इसी वजह से उनकी बेटी इतनी गुणवती है। ऐसे लोगों का प्रेम, आदर प्राप्त करना. भी एक भाग्य की बात है- दण्डनायक की बेटियों के दिलों में ऐसी भावना धर कर गयी थी। इस भावना ने उन्हें और भी निकट ला दिया था। माँ को खोने के दुःख को भुलाकर माँ का प्रेम देकर माचिकब्बे ने दण्डनायिका की बेटियों के हृदयों में ऊँचा स्थान पा लिया था ।
मरियाने का मन दुःख से भर गया था। मारसिंगय्या ने उनके प्रति अपनी पूरी सहानुभूति प्रकट की और उनके इस दुःख को हल्का करने का प्रयास किया ।
एचलदेवी ने सभी बातें बिट्टिदेव को नहीं बतायी थीं। अब आगे का कार्यक्रम क्या 242 पड़महादेवी शान्तला भाग दां