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हो, बिट्टिदेव यह सोच ही रहे थे कि दण्डनायिका चल बसीं। इसी वजह से महासभा के कार्यक्रम स्थगित कर दिये गये थे। वह स्थगित सभा आज बुलायी
यी थी र इर: सा योगा, परी और चट्टला की सुनवाई होनी थी। सभा में प्रधान गंगराज, महादण्डनायक, मन्त्रिगण, दपइनाघ, हेग्गड़े मारसिंगय्या, शान्तला, मरियाने की बेटियाँ, रावत मायण तथा अन्यान्य अधिकारी मौजूद थे। महाराज बल्लाल और उनके भाई भी थे। पिछली बार की तरह इस बार भी सभा के सारे कार्य का निर्वहण बिट्टिदेव को ही करना पड़ा।
अबकी बार महासभा के समक्ष चोकी और वामाचारी को एक साथ उपस्थित किया गया था। वे केवल एक-दूसरे को देख सकते थे, आपस में बातचीत नहीं कर सकले थे। दोनों दूर-दूर पर खड़े किये गये थे। चोकी और बामाचारी दोनों को हथकड़ी पड़ी हुई थी।
बिट्टिदेव ने चोकी से कहा, ''इस महासभा के सामने झूठ कहकर पार नहीं हो सकोगे इसलिए सत्य बोलना होगा। उस दिन जिस स्त्री को तुमने देखा था, वह कौन है-जानते हो?"
"जानता हूँ।'' "उस दिन उसमे जो कुछ कहा, वह सत्य है?" ।
“पति के सामने कोई विवाहिता अपनी करनी स्वीकार करने को तैयार होगी?'' चोकी ने भी सविनम्र प्रश्न किया।
"तो तुम्हारा कहना है कि उसका कथन सरासर झूठ है।" "सच और झूट को मिलाकर कहा है।" "क्या झूट और क्या सच है" ।
'पीपल की परिक्रमा करना सच हैं। मैं रोज देख-देखकर तरस खाता रहा। एक बार उस बेचारी पर दया आ गयी तो मैंने उससे पूछा। उसने सन्तान प्राप्त करने का अपना उद्देश्य प्रकट किया। मैंने पूछा, 'अगर तुम्हारा पति हिजड़ा हो तो सन्तान कैसे होगी? तुम्हें पति चाहिए या सन्तान?' वह बोली, 'जो पति सन्तान नहीं दे सकता उससे क्या प्रयोजन?' मैंने अपनी सहानुभूति जतायी । वह सुन्दर थी, मुझे अच्छी भी लगी। उसके पास वशीकरण के लिए भस्म लेकर मचा। मैंने उससे यह नहीं कहा कि मैं कौन हूँ, बस उस पर भस्म का प्रयोग कर दिया। वह नकेल लगी गाय की तरह जिधर घसीटा उधर चलने लगी। बाद में उससे उसके पति की बात छेड़ता तो वह शायद चिढ़ जाती। मैंने उसे छोड़ देने की बात कही तब भी वह मुझसे चिपकी रही। यह बदचलन औरत ही तो हैं। युद्धशिविर में किसी और के साथ प्रेम हो लिया, उसके साथ रंगरेलियाँ मनाती रही। इसने आपकी तरफ़ के एक गुप्तचर को अपने जाल में फंसा लिया और सेना की
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 2-13