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उपस्थित लोगों ने एक-दूसरे को देखा। "छोटे अप्पाजी!'' एबलदेवी ने कहा।
"अच्छा माँ, कहकर बिद्रिदेव उठकर बाहर चल आये। मरियाने भी उनके साथ चले आये। बच्चियाँ भी बाहर आकर अपने-अपने कमरे की ओर चली गयौं । माँ के कहे अनुसार पद्मला ने बाहर से किवाड़ बन्द कर दिया था। अन्दर केवल दो ही रहीं-चामब्बे और एचलदेवी।
चामव्ये धीरे-से पलंग पर ही उस छोर की तरफ सरक आयी जिधर एचलदेवी बैठी थी। उसने एचलदेवी की गांद पर हाथ रखा, साथ ही अपना सिर भी। और कहने लगी, "सन्निधान, अपनी शरण में रहने वाले हमें क्षमा करें। पण्डित जी को मेरे जीवित रहने में शंका उत्पन्न हो गयी है। इन सब लोगों ने जो कुछ भी कहा वह मुझे धोखे में रखने के लिए कहा है। मरने से मैं इरती नहीं। मुझ पर पक भारी बोझ पड़ा हआ है। इस बोझ को ठोकर मैं मरना नहीं चाहती। इस बोझ की उतार देने में ही इरादे से आन मैं राजमहल ले जाने के लिए कह रही थी। खद भगवान ही सन्निधान को यहाँ बुला लाचे। सन्निधान के समक्ष अपनी गलती पान लें तो मेरा बोझा उतर सकता है। क्षमा करना या न करना सन्निधान की इच्छा के अधीन हैं।'' कहती हुई चामल्ने कुछ देर तक रुक गयी। उसकी साँस भारी हो गयी थी। शुरू-शुरू में बातें आसानी से नहीं निकल रही थीं। परन्तु धीरे-धीरे सुधर रही धी। उसकी काँसे की-सी आवाज़ अब न रहने पर भी उसकी बातें धीमी और रुक-रुककर कहीं जाने पर भी एचलदेवी को स्पष्ट सुनाई पड़ रही थीं। प्रचल करने पर भी उसकी आवाज ऊँची न हो सकी।
दण्डनायिका है सकते ही चलदेवी ने कहा, "क्यों दण्डनायिका जी: क्यों ऐसी अतम्बद्ध बातें कर रही हैं: किसने कहा कि आपने ग़लती की? बेकार ही झूठ-मूठ अपने ऊपर ओढ़ ले रहीं हैं। कल शाम को जब पण्डितजी को आपके यहाँ घबराकर जल्दी बुलवाया गया तभी से हम आपके स्वास्थ्य के बारे में बहुत चिन्तित रहे और बराबर समाचार प्राप्त करते रहे। पण्डितजी ने बताया कि आपके हदय की गाँत कुछ विचित्र-सी हो रही है। अपनी आँखों से खुद देख कुछ दिलासा देकर धीरज बंधाने के लिए हम यहां आये हैं। आप इस तरह घबरा जाएँगी तो इन बेटियों की क्या हालत होगी: आपके स्वस्थ होने की जिम्मेदारी अब दवा पर नहीं, आप ही पर अधिक निर्भर करती है। पण्डितजी ने भी यह कहा है। अन्न आप निश्चिन्त होकर आराप करें। समझी."
"तन्निधान मुझे क्षमा करें ! मैं छोटी बच्ची नहीं हूँ। पुझे सब याद है। मैंने अन्छा-बुस जो भी किया, मुझे मालूम है। अभी सन्निधान से जैसा निवेदन किया मझे जीने की आशा नहीं। परने से पूर्व मुझे अपनी गलती के लिए क्षमा मिले,
23 :: पट्टमहादेची शान्तला : भाग दो