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अधिक स्पष्ट रूप से सुन पढ़ सकभी "पारी श्यारा कलमासानी ने कंन की स्थिति हो गयी थी। आसानी से बात कर सकने की हालत न होने पर भी पहले की अपेक्षा ज़्यादा सुगम-सा महसूस हो रहा था। ___ "मुझे कोई ज़रूरी काम नहीं है। वैद्य ने कहा है कि उनके आने तक मैं तुम्हारे ही पास बैठा रहूँ। नौकर जा संवा करंगा यह प्रतिफलाकांक्षी होकर की जानेवाली सेवा है। हम जो करते हैं वह प्रेम और आदर की सेवा है। अब तुम्हें ऐसे ही प्रेम और आदर से की जानेवाली सेवा की शरत है। वैद्य ने वहीं कहा
''मेरे लिए इस सबसे बढ़कर सेवा मुझं राजमहल ले जाना है।" 'मैंने पहले ही कहा न कि ले जाएँगे।" ''चैद्यजी से अनुमति लेकर ही जाना होगा?''
"तुमको आराम से रखने के लिए कहा है। इस जगह से अभी हिलना-इलना नहीं चाहिए। अब तुम काछ अच्छी होती जा रही हो, तुमको यह महसूस हो रहा होगा। उनके आने तक और अच्छी हो जाओगी। वे देख लें और कहें तो हमें हादस बँधेगा।'' मरियाने बोले। उन्हें लगा कि पू:-राजमहल क्यों जाना है। लेकिन यों पुङकर उसे बातों में घसीटना इस स्थिति में अमुचित समझकर चुप रहे। परन्तु उनके मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे, "राजमहल इसे क्या काम है? वहाँ इसका आदरपूर्वक कौन स्वागत करेगा? अब यह कुछ बात को और उसकी प्रतिक्रिया कुछ और हो जाय तो उसका क्या पयवसान होगा? वैद्य ने आसानी से कह दिया कि उसको इच्छा पूरी करो। उसकी इस इच्छा को पूरी करें कैसे? इच्छा पूरी करें भी लेकिन यदि हित के बदले अहित ही हो तो ऐसी इच्छा को पूरी करना उचित होगा?"
इतने में दांडेगा दौड़ा-दौड़ा आया और बोला, 'मालिक, राजमहल की पालकी आयी है।" ___ "तुम यहीं रहो," कहकर मरियाने बाहर दरवाजे के पास जल्दी-जल्दी गये। उनके मन में कई सवाल उठे, "मेरे घर पर राजमहल की पालकी? कौन आये होंगे? क्यों आये होंगे?" यों सबालों में उलझे हुए ही दरवाजे पर पहुंच गये।
दडिगा ने देकव्य को सूचना दे दी थी। दण्डनायक की बेटियां भी फाटक तक जा पहुँचौं। महामातृश्री एचलदेवी और विहिदेव दोनों पालकी से उतरकर फाटक की ओर आ रहे थे। परिवाने ने झुककर उन्हें प्रणाम किया।
सन्निधान के आने की सूचना पहले मालूम नहीं हुई।'' संकोच के साथ मरियाने बोले। ___ "दण्डनायिका जी की तबीयत कैसी है? उनका स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया
234 :: पट्टमहादयी शान्तला : भाग दो