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तो गुजरी होंगी। उनके कुछ परिणामों को हमें ही भुगतना होगा। बच्चों को यह सब बातें नहीं बतानी चाहिए। अब भी मैं भगवान की सौगन्ध खाकर कहूँगी कि मैंने जो भी किया, अपनी बच्चियों के हित की दृष्टि से ही।" ।
"नहीं, तुमने जो कुछ किया वह हेग्गड़े परिवार के प्रति ईर्ष्या के कारण । इसीलिए तुमने हमारे घर के गोबर के साथ उन मनहूस ताबीजों को हेग्गड़े परिवार की बुराई चाहकर उनके घर भेज दिया और खुशी मनाची निर्दोष की बुराई चाहने पर तो उसका उल्टा असर बुराई करनेवाले पर ही पड़ता है-इस बात को अच्छी तरह याद रखो।" मरियाने ने कहा।
"इसलिए तुमने यह झूठ कहा कि वे हमारे नहीं। है न?" पद्यला ने माँ से कुछ गरम होकर पूछा। शान्तला ने जो सवाल उससे किये थे, वे मूर्तिमान होकर उसके दिल में उठ खड़े हुए। इसीलिए शायद पद्मला की बातों में इतनी कठोरता थी।
"उसका रहस्य न खुले, इसलिए ऐसा कहा था।" चामब्ये बोली।
"तुम समझती हो कि बह रहस्य है! उसके बारे में सारा राजमहल जानता है। हेगड़े के घर में सब जानते हैं। अगर कोई नही जानती तो मैं और मेरी वहिनें। अब मेरी समझ में आया है। तुमने पदकवाला हार इन्हीं मनहूस यन्त्रों के लिए बनवाया है। पिताजी को शायद पहले से ही शंका रही होगी इसलिए जब योप्पि ने दिखाया तो उन्हें पसन्द नहीं आया था। तुमने इसलिए कहा था कि उसे हमेशा पहने रहना चाहिए।" यह कहते हुए पद्मला ने अपने गले के उस हार को निकालकर फेंक दिया। ज़ोर से फेंकने के कारण उस पदक का ढक्कन खुल गया। ___"अब उसमें वह यन्त्र नहीं है, अम्माजी। हार पर गुस्सा क्यों करती हो?" मरियाने ने कहा।
"वही मेरे गले के मंगलसूत्र के लिए बाधक बन रहा है, पिताजी। इसलिए निकाल फेंक दिया। बदि इससे आपका मन दुःखी हुआ हो..."
"मुझे तनिक भी दुःख नहीं। मेरी केवल एक ही इच्छा है कि तुम्हारी आशाआकांक्षा सफल हो। लेकिन आज के वातावरण को देखने से लगता है, यह आशा केवल आकाश-कुसुम है।" ____ 'अप्पाजी, मुझे अपना भविष्य खूट बनाना है। इसलिए क्या सब गुजरा है, उसे कृपा करके मुझे बता दीजिए। बाद में..."
चामचे बीच में बोल उटी, "आप कुछ न कहें। मैं ही सब बता दूँगी, क्योंकि आपको भी सब मालूम नहीं है।" ___"तुम्हारे कहने में कोई बाधा नहीं। परन्तु मुझे ही पहले बताने दो, क्योंकि तुम्हारा नमक-मिर्च लगा किस्सा अम्माजी के भविष्य को कभी अच्छा नहीं बना
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग टो :: 192