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उसने बताया कि इन लड़कियों को यह जानती है, परन्तु उन लड़कियों को इस स्त्री का परिचय नहीं था। तब उस स्त्री को एक अलग जगह बैठाने को कहा गया।
विट्टिदेव ने पद्यला से पूछा, "आपने कहा कि उस दूसरे आदमी को आप जानती हैं। कहाँ देखा था?"
"और कहौं, अपने ही महल में; यह हमारे यहाँ पानको होनेवाला नौकर था। उसका नाम चोकी है।" ___"इसे जानती हो तो उस पहले आदमी का भी परिचय होना चाहिए।" बिट्टिदेव ने छेड़ा।
"न मैं उसे जानती हूँ, न वह मुझे जानता है। फिर भी कोई कहे कि हमें परिचित होना - मैं दम का माली हैं.. नालागा ।
"महादण्डनायक की बेटी को झूठ नहीं बोलना चाहिए । वह बताता है कि कई वार आपके घर आया है।"
“हो सकता है। हमने देखा नहीं। उसने भी हमें नहीं देखा। तभी तो वह पहचानता नहीं।" पद्मला ने कहा।
__“देखिए, एक बात हम सबको मालूम है। अगर कोई पुरुष घर आए तो वह सम्भव है कि घर की स्त्रियाँ उसे न दिखें। परन्तु आगत पुरुषों को घर की स्त्रियाँ किसी तरह से, कम-से-कम परदे की आड़ से ही सही देख ज़रूर लेती हैं।''
"ठीक है। लेकिन यह सच है कि हमने उसे नहीं देखा।"
''आप लोग कितना ही कहें मुझे आपकी बातों पर भरोसा नहीं हो रहा है। हो सकता है कि देखा होने पर भी किसी कारण से नहीं देखा कह रही हो।" बिट्टिदेव ने कहा।
"अगर हमने झूठ कहा हो तो यहीं सन्निधान के सामने अपनी जीभ हम काटकर रखने को तैयार हैं। हमें झूठ बोलना नहीं आता। चामला ने कुछ खिन्न होकर कहा।
"अभी जो लोग आये थे, शत्र-सेना से कैद किये हुए हैं। वे आपके घर के यारे में बहुत कुछ कहते हैं। उनकी बातों की सत्यता को जानने के लिए आप लोगों को भी इस तरह कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। दूसरा मार्ग नहीं। आप लोगों को असन्तुष्ट न होकर धैर्यपूर्वक उत्तर देना होगा।" ___"हम सन्निधान के सामने हैं। सत्य ही कहना चाहिए-इस बात को हम जानती हैं। हमने वही सीखा है। सत्य कहने पर भी अगर यह कहें कि विश्वास नहीं होता तो यह सत्य का अपमान ही हुआ न?" चामला ने कुछ ढीठ होकर कहा।
At :: पट्टमहादेवी शान्तसा : भाग दो