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पछला पंखा झलने लगी। चामब्बे ने बोप्पिदेवी की जाँघ पर से अपना हाथ उठाकर पतिदेव की जाँघ पर रखा और उनकी दृष्टि को अपनी ओर आकर्षित किया। अपनी तर्जनी दिखा संकेत किया "एक अभिलाषा!..."
"अब कुछ नहीं कहो, आराम से सो जाओ।" मरियाने ने फिर कहा।
वह आँख मूंदकर पड़ी रही। उसके श्वासोच्छ्वास की गति कभी तेज कभी धीमी होती रही। फिर एक साधारण गते पर आ गयी। धीरे-धीरे आँख लग गयी। माँ को सोया पाकर पद्मला ने पंखा झलना बन्द कर दिया। सभी वेटियाँ उठ खड़ी हुईं। चामला ने माँ के पैरों के पास पड़ी ओढ़नी को उठाकर धीरे-से माँ के शरीर को गले तक डेंक दिया।
मरिगोभी उठ खडे हा और बोले "टिगा को यहीं रहने के लिए आदेश दूंगा। तुम लोगों में से कोई एक देकब्बे को यहाँ भेजो, और जाकर सो जाओ।"
पद्मला ने कहना शुरू ही किया कि भोजन...कि तुरन्त परियाने बोले, "अम्माजी, आज कुछ नहीं चाहिए। मुझे नींद आ जाए तो अच्छा । तुम लोगों की भी यही हालत हो रही होगी। जाकर सोने का यत्न करो। कल की महासभा में जाना हो तो हमें आज रात आराम करना चाहिए ही। अब जाओ।" कहकर मरियाने ने पत्नी की ओर एक बार देखा और चले गये।
दडिगा और देकय्ये के आने पर वे भी सोने चली गयीं।
पिता-पुत्रियों को बहुत देर तक नींद न आ पायी होगी, उनके उठने के पहले ही वैद्यजी आ गये। परिवाने वैद्यजी के आने की बात जामकर प्रातःकालीन सभी कृत्यों से निपटकर हाथ-मुँह धो यहाँ जल्दी ही आ गये। उनके आने से पहले वैद्यजी देकब्बे से पूछताछ कर जान चुके थे कि चूर्ण सूंघने के बाद दण्डनायिका की कैसी हालत रही। तब दण्डनायिका जागी न थी। दण्डनायक को आते देखकर पण्डितजी उठने की कोशिश में लगे तो मरियाने "वैठिए, बैठिए, मैं भी बैट्रॅगा," कहते हुए गलीचे पर पण्डितजी के पास ही बैठ गये।
'चूर्ण का प्रयोग करने के बाद क्या सब हुआ यह देकब्बे के द्वारा मालूम पड़ा। सुना कि रात को एक बार जगी थीं। जागते हुए भी एक तरह की बेहोशी छायी रही । सुना कि फिर जल्दी सी गयीं। इसलिए यह मालूम होता है कि चूर्ण ने अच्छा असर किया हैं। पहले की बीमारी कामिला जो स्थायी रूप से घर कर चुकी थी, शायद दूर हो जाय। ऐसी सम्भावना तो है फिर आपका और इन बच्चियों का भाग्य है।" पण्डित ने कहा।
"यह सब आपके हाथ का प्रभाव है, वैद्यजी।" मरियाने ने हार्दिक भाव से कहा।
"अगर इसे मेरे हाथ का प्रभाव मानें तो वह केवल अहंकार की बात होगी।
290 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग टो