________________
दण्दनायिका चामब्बे खुद अपने पति से न कहकर उस महात्मा के पास जाती-आती रहती हैं। फिर तुम क्यों डली हो?' यह मरा दुभाग्य ही था कि मैंने इसकी बात पर विश्वास कर लिया और इसके साथ चली गयी। पता नहीं यह किसके पास ले गया। उसने चिकनी-चुपड़ी बातें करके जैसा इसने कहा था, अभिमन्त्रित भस्म दिया। दोनों ने आधा भस्म वहीं खा लेने के लिए मुझसे कहा। उसे खाने के बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी पता नहीं। मुझे जब होश आया तो मैं समझ नहीं पा रही थी कि मैं कहाँ हूँ। मैं कैद कर ली गयी थी। निस्सहाय होकर मुझे अपने शोल की बलि देनी पड़ी। हर क्षण शाप देती मैं बन्धन में दिन काटा करती थी। बाद में पता चला कि यह शत्रुओं का गुप्तचर है। भस्म देनेवाले भी गुप्तचर हैं, यह भी पता चल गया। दोनों, रात के बक्त, जहाँ मुझे कैद करके रखा था, वहाँ मिलते थे। दोनों ने मेरा शील बिगाड़ा। यह सब मैं असहाय ही सहती रही। दूसरा कोई चारा नहीं था। मरना भी चाहा मगर इन लोगों की मुझ पर कड़ी नज़र होने के कारण वह भी नहीं हो सका। शील भंग होने के कारण पुझमें तीव्र प्रतिकार की ज्वाला भभक उठी। इन लोगों का षड्यन्त्र हमारे पोय्सल सानाञ्च कं सर्वनाश करने के लिए चल रहा है-जब यह मुझे स्पष्ट हो गया तो मैंने निश्चय किया कि मेरा शील भंग तो हो ही गया, कम-से-कम राज्य की रक्षा के लिए तो कुछ कर सकें। इसी इरादे से मैंने इनसे ऐसा व्यवहार रखा कि उन लोगों को मुझ पर पूरा विश्वास हो गया । पोयसल राज्य के हित की रक्षा के उद्देश्य से मैं स्वयं गुप्तचर बन गयी। जग्गदेव के सैन्य शिविर में उनका भण्डार कहाँ है और रसद किस जगह है, सेना की गतिविधि कैसी है आदि, सभी बातों का पता लगाकर पोसल गुप्तचर चाविपच्या के जरिये खबर भेजती रही। चाहें तो चाविमय्या को बुलवाकर दयाफ्त कर सकते हैं। एक बार लम्बी साँस लेकर अन्त में वह बोली, "मैं शील भ्रप्ट और पतिता हूँ, लेकिन विश्वास कीजिए मैंने राजद्रोह नहीं किया।
बिट्टिदेव ने बल्लाल से एकान्त में कुछ बातचीत की। बाद में आदेश दिया, "अब इन सबको जहाँ कंद में रखा गया है, वहीं ले जाओ।"
कैदियों को यथास्थान ले जाया गया।
"अब आप लोग भी विदा ले सकती हैं। किसी वैयक्तिक विचार-विमर्श करने के इराद से आज यहाँ म एकत्रित हुए थे। परन्तु इसमें कहीं कोई ऊंचा राजनीतिक षड्यन्त्र दिखाई दे रहा है। इसलिए विस्तार के साथ इन बातों की तहकीकात करनी होगी। और इस कार्य के लिए ऊंचे पद के राज्याधिकारियों की उपस्थिति की आवश्यकता सन्निधान महसूस करते हैं अतएव बैठक काल तक के लिए स्थगित कर रहे हैं। आप लोगों की आवश्यकता होगी तो बुलवा भजेंगे।"
220 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो