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कपड़े उतार हाथ-मुँह धो आये। तब तक दूध पिलाना हो चुका था।
"छोटा दण्डनाथ क्या कहता हैं?" मारसिंगय्या ने कहा।
"अभी तो छोटा है। बाद में यह सेर का सवासेर हो जाएगा। यह कोई साधारण नहीं। इसकी जन्मपत्री लिखनेवाले ज्योतिषी ने कहा है कि यह बहुत प्रतिभावान, शूर-बीर बनेंगा।"
''तुम्हारे हाथ से दूध पीने के बाद उसे ऐसा ही बनना होगा।" मारसिंगच्या ने चुटकी ली। फिर राजमहल में जो सब गुजरा वह विस्तार से शान्तला ने पिताजी को कह सुनाया।
उधर महादण्डनायक के घर में एक दूसरा ही अध्याय शुरू हो गया था।
कामला से पीड़ित दण्डनाविका चामब्वे ने पूरी तरह से बिस्तर पकड़ लिया था। प्रधानजी के वैद्य गणराशि पण्डित ने चिकित्सा की, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। राजमहल के पण्डित चारुकीर्ति जी की चिकित्सा हुई, मगर उससे भी कुछ लाभ नहीं हुआ। उसका सारा शरीर पीला पड़ गया था। आँखें एकदम पतझड़ के पत्ते की तरह बन गयी थीं। होठ सूखकर सूखे छिलके की तरह हो गये थे। पहले हमेशा चमकती रहनेवाली उसकी आँखें गड्ढे में घुसकर तेजहीन हो गयी थीं। इधर कुछ समय से यह कम ही बोला करती थी। जिस बात को वह बच्चों में छिपा रखना चाहती थी, वह सब-कुछ बच्चों को मालूम हो जाने के कारण अपने पति
और बच्चियों के सामने भी उसे शरम से सिर झुकाना पड़ा था। वह अपनी दुर्दशा के कारण बहुत दुःखी थी। अपने अधिकार के बल पर जो बड़े गर्व से दूसरों के सामनं इतराती हुई, ऐंठकर चलती थी, आज भगवान ने उसकी ऐसी दशा कर रखी थी कि जो कुछ नहीं होना चाहिए था, वही हो रहा था। प्रेम में पगे पतिदेव और अपनी कोख की बच्चियाँ भी अगर कभी-कभी पूछताछ करती तो उसमें
औपचारिकता मात्र दिखती थी, पहले जैसी आत्मीयता नहीं। उसे अपने-आप से घृणा होने लगी थी। उसे भी राजमहल की घटना का पता चल गया था। उसके मन में यही दुःख था कि बच्चियों को महाराज के सामने खड़ी होकर गवाही देनी पड़ी। उसने अपने पतिदेव के सामने इसका जिक्र भी किया, "बच्चियों से ऐसी गवाही के बाद उनसे उनके पाणिग्रहण की प्रार्थना कैसे हो सकेगी? क्या इस स्थिति से बचने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता?"
"तुमसे कितनी बार कहा है कि राजमहल की बात मत पूछो, फिर भी तुम नहीं मानती हो; इस बीमारी की हालत में भी तुम्हारा यह झगड़ालू स्वभाव नहीं छूटेगा?" दण्डनायक झिड़की देकर वहाँ से उठकर चले गये।
बच्चियों से भी पूछा, "जाना ही होगा क्या?' "जाना तो होगा ही, जो करना चाहा सो सब किया और अब पूछती
पमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 229