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बल्लाल ने समझ लिया कि मरियान के दिल में कुछ दर्द है अवश्य । इस . सम्बन्ध में उन्होंने विट्टिदेव से वात छड़ी 1 तब तक विट्टिदेव को यह सब मालूम हो चुका था। अपने पिता से सारा घटनाचक्र जानने के बाद बेटियों अपनी माँ से भी सारा ब्यौरा जान चुकी थीं। उन सब बातों को सहजभाव से इन लोगों ने शान्ताला से भी कह दिया। और, शान्तला ने वह विष्टिदेव को सुना दिया। सारी बातें कर चुकने के बाद शान्तला ने बिट्टिदेव से कहा, "अब यह बात समझ में अ नहीं है कि गलती किसकी है। अपराध किसी ने किया और दण्ड किसी और को दिया जा रहा है; यह कैसा न्याय है? आप किसी तरह से इस स्थिति को टीक कर दें।
"मैं अवसर मिलते ही सन्निधान को जितना उचित होगा, बताऊँगा। सबसे पहले मैं उनके पूर्वाग्रह दूर करना चाहता हूँ ! उससे पहले माताजी को भी इस बारे में पूरी जानकारी देनी होगी। जिससे माताजी उनको क्षमा कर सकें। इसके बाद ही कुछ किया जा सकता है। यह सब कैसे हो पाएगा यह मुझे सूझ नहीं रहा है, क्योंकि सुनने में आया है कि दण्डनायिका का स्वास्थ्य ठीक नहीं। यह. प्रकारान्तर से माताजी को मान्नुम हो गया है, फिर भी इस बारे में कोई विशेष उत्सुकता नहीं दिखाकर उन्होंने इतना भर कहा, 'येचारी, जल्दी अच्छी हो जाएँ। "
शान्तला की त्योरियां चढ़ आयी थीं। बिट्टिदेव आगे कहते जा रहे थे, चन्दलदेवी ने जब देखना चाहा तब माताजो का जैसा व्यवहार था उससे तो तुप परिचित हो। तव की और अब की रीति में बहुत फ़र्क है न? तुम ही कहो! क्योंकि तुमने प्रत्यक्ष रहकर देखा हैं और जो देखा उसे बताया भी है तुमने।"
"चामच्चे की बात ही अलग है। देखने की इच्छा रहने पर पी प्रार्थना करने के लिए मन में संकोच है। इन दोनों में तुलना नहीं हो सकती। जल्दी ही इस बारे में कुछ करना चाहिए।"
"मेरी इच्छा को तुम जानती ही हो। मैं सुअवसर की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।" बिट्टिदेव ने कहा।
शान्तला से हुई बातचीत को कार्यरूप में परिणत करने के लिए उचित अवसर समझकर चिट्टिदेव ने सम्भिधान से पूछा, "सन्निधान का विचार है कि पहादण्डनायक के मन में शायद ऐसी कुछ वेदना है, है न?" ___ "हमें मालूम कैसे होगा? राष्ट्र के प्रति उनकी निष्टा में लेशमात्र भी सन्देह नहीं, लेकिन जग्गदेव के साथ के युद्ध के समय उन्हें राजधानी में ही रहने दिया, इससे उन्हें शंका हो गयी है कि उनकी निष्ठा में हमें विश्वास नहीं और इसी वजह से ने दुःखी हों तो हम क्या करें?" बल्लाल ने कहा।
"अगर वहीं अकेला कारण होता तो वे अपने दुःख या परेशानी को व्यक्त
12 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो