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प्रयोग भी किया गया, फिर भी वे तीर उन हाथियों की चमड़ी को न छेट संके थे। महाराज बल्लाल की सहनशक्ति अब जवाब दे चुकी थी। उन्होंने अब पीछे रहना उचित नहीं समझकर आगे बढ़ने में बिट्टिदेव से विचार-विमर्श किया। आगे बढ़ने के लिए बिट्टिदेव भी सहमत हो गये। परन्तु गंगराज और डाकरस दोनों ने इस तरह आगे बढ़ने नहीं दिया। उन लोगों ने स्पष्ट अनुरोध किया, “महाराज, जब तक हम जीते हैं तब तक आपको आगे आने की जरूरत नहीं होगी।"
दोनों ओर से मरनेवालों की संख्या बहुत बढ़ गयी। पोसलों के लिए एक सहूलियत यह रही कि उन्हें समय पर रसद मिल जाती और नयी युद्ध सामग्री भी प्राप्त हो जाती। इनके अतिरिक्त, नये सैनिक भी थोड़ी-बहुत संख्या में आकर सेना के साथ हो लिया करते थे। इन सब कारणों से शत्रु को अग्रसर होने से रोकने में मदद मिती। परन्तु यह नहीं हो सका कि इतने से शत्रु-सेना को पीछे हटा दें या कैद कर सकें।
अपनी रसद को रोक रखनेवाती बोतल-सेना को निज ने के बाद आगे हमला करने की बात सोचकर जग्गदेव ने एक दिन अपनी आधी से ज़्यादा सेना को पीछे की तरफ़ हमला करने भेज दिया। परन्तु उस सेना के कुछ भी हाथ न
__माचण दण्डनायक और उसकी पार्श्वसेना महाराज के आदेश से मूल सेना के साथ आ मिली।
तर एक रात पोसल युद्धशिविर में पन्त्रिपरिषद् की बैठक हुई। बल्लाल नं सलाह दी, "मृत्यु की परवाह न कर हमें अपनी सम्पूर्ण अश्वसेना को शव सेना पर धावा बोलने के लिए भेज देना होगा। वह सीधे शत्रु-सैनिकों की कतारों को कारते हुए घुसकर धावा कर दे। खासकर सामने के हस्ति-बल की कतार को तोड़ना होगा।"
गंगराज ने कहा, 'सन्निधान की सलाह तो अच्छी है। इस तरह ही अचानक जोरदार हमला करने पर शत्रु-सेना तितर-बितर हो सकती है। मगर यह भी सम्भव है कि उनकी स्तिसेना मजबूत रहकर सामना करे और हमारी अश्वसेना हताहत हो, कमजोर होकर पीछे हट जाय। इसलिए इस विषय पर कुछ गम्भीर होकर सोच-विचार करना होगा।' ___ 'जग्गदेव की कहीं एक बात हमारे सुनने में आयी है। उसे सुनकर भी हम चुप बैटे रहें, यह नहीं हो सकता।' बल्लाल ने कहा।
'हम जान सकते हों तो..."
'हा-हां क्यों नहीं? यह कहता फिरता है कि वह महाबोद्धा है। व्यूह-रचना में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। खुट को अभेद्य हस्ति-बल का नायक
पट्टमहादेवी शान्तला : 'पाग दो :: 205