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मुगदर लेने के लिए कहा गया। हाल में तैयार हुए जिगह-बख्तर पहनने का आदेश दिया गया। "स्योदय होते ही दसों दिशाओं में युद्ध के बाजे बज उठेंगे। तुरन्त सब योद्धाओं को प्रवाह की तरह आगे बढ़कर शत्रु-सेना पर एकदम धावा बोल देना होगा। हमारी शार्दूल पताका लेकर आनेवाली सेना जयघोष करते हुए पीछे-पीछे चले। सभी तीरन्दाज सेना आड़ के टावों में छिपकर चारों ओर से तीरों की वर्षा करे। कल का दिन पोय्सलों के लिए विजय का दिन होगा और जग्गदेव के पराजय का। अब चल दीजिए। बहुत वक्रत हो गया। इस सीमित समय के अन्दर जितना हो सके आराम कर लीजिए। प्रातः के भुरभुरे में ही सबको तैयार हो जाना होगा।" अल्लाल के ये बोल आवेशपूर्ण थे। उन्होंने फिर कहा, "हम भी आप लोगों के साध आगे चलेंगे। समझ गये न? जीवित रहे तो कल का दिन गर्व करने का होगा, नहीं तो वीरगति प्राप्त होगी। सब आप ही लोगों के हाथ है। हम केवल निमित्त मात्र हैं।" कहकर उठ खड़े हुए।
दल-नायक और सेना-नाचक सब उठ खड़े हुए और प्रणाम कर चले गये।
गंगराज मौन प्रेक्षक बनकर सब देख रहे थे। वह उठकर वहीं खड़े रहे, गये नहीं।
"हमारे व्यवहार से आपको परेशानी हुई, प्रधानजी:" पास जाकर बल्लाल ने पृला।
"नहीं सन्निधान। मुझे, माचण और डाकरस-हम तीनों को कन्न आपके अंगरक्षक बनकर आपके साथ रहने के लिए अनुमति मिलनी चाहिए।'' गंगराज ने कहा।
आप लोग नायक हैं, अंगरक्षक नहीं। इसलिए आप लोग नायक ही का काम कीजिए। अंगरक्षक तो साथ रहेंगे ही।" ___ "ऐसा नहीं हो सकता। सन्निधान को हमारी परिस्थिति भी समझनी चाहिए। हमने स्वर्गवासी प्रभु को और महामातृश्री को वचन दिया है; उस वचन का पालन करने के लिए हमें मौका दिया जाना चाहिए।"
'सी क्या है?" "जब तक हम जीवित हैं तब तक सन्निधान की रक्षा करेंगे।"
"हम आपके वचन पालन में बाधक नहीं होंगे। परन्तु युद्धभूमि की गतिविधियों पर हमारा काबू नहीं रहता, यह लो आप जानते हैं।"
"आप साथ रहने की आज्ञा दें, बाक़ी बातें हम खुद देख लेंगे।"
"यही कीजिए। अब समय हो गया। आप सब अब आराम कीजिए।" बल्लाल ने कहा।
गंगराज धीरे-धीरे चले गये। वहीं अब केवल तीन लोग बच रहे-बल्लाल,
पट्नमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 207