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लौटने की स्थिति में मेरी प्रार्थना हैं कि बच्चे का यही नाम रखा जाए। यह तो . हुई मेरी पहली प्रार्थना। मेरी दूसरी प्रार्थना यह है कि बच्चा अच्छा योद्धा और राष्ट्रभक्त बने, इसके लिए राजघराना उचित शिक्षा की व्यवस्था करे। मेरी दो बच्चियाँ हैं उन्हें...न, न, मेरे मुँह से ऐसी वात; दण्डनाथ जी योग्य वर ढूंढकर उनका विवाह कर देंगे। मेरी ये दो आशाएं सफल करने का आश्वासन मुझे मिले तो मेरे प्राण निश्चिन्त होकर निकलेंगे।" कहती हुई चन्दलदेवी ने अपना हाथ एचलदेवी की गोद में रख दिया। उनकी आँखें एचलदेवी को ही देखती रहीं। तब तक शान्तला ने बच्चे को अपने हाथों में ले लिया था।
एचरलदंवी ने चन्दलदेवी का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, "आपके कहे अनसार ही करेंगे। आप आराम कीजिए। अब हम चलेंगे। और चन्दलदेवी का हाथ धीरे-से एक ओर कर एचलदेवी उठ खड़ी हुईं। ___ माचिकब्बे भी आँसू पोंछती उठी और एचलदेवी से पहले ही कमरे से बाहर आ गयीं। बच्चे को धाय के हाथों में देकर शान्तला भी एचलदेवी के पीछे-पीछे चली आयी। माचिकब्धं जो पहले ही बाहर आ गया था, वहीं बेठी सिसक-सिसककर रोती रहीं । शान्तला माँ के पास जाकर बोली, "उठो मां, सन्निधान चलने को तैयार खड़ी हैं।"
हेगड़े मारसिंगय्या वहाँ आये। बोले, "अम्माजी, तुम सन्निधान के साथ आगे चलो। मैं तुम्हारी माताजी को ले आऊँगा।' उन्हें पहले ही सब समाचार मालूम हो गया था। वास्तव में चिण्णम दण्डनाथ के वीरगति पाने का समाचार अभी तक सन्निधान को मालूम नहीं कराया गया था। अभी मालूम कराएँ या नहीं इसके बारे में वह सोच रहे थे। पत्नी के कन्धे पर हाथ रखकर कहा- "उठो, सन्निधान के समक्ष हमें संचम से रहना चाहिए।" ___"क्या करें, मेरा हृदय फट रहा है। हृदयान्तराल को इस बात का ज्ञान नहीं कि सन्निधान पास में हैं। मैं क्या करूं?" सिसकती हुई माचिक ने कहा । इच्छा के विरुद्ध उनकी आवाज़ ऊंची हो गयी थी। आवाज एचलदेवी को भी सुन पड़ी होगी, इसलिए वे लौट पड़ी।
"देखो, सन्निधान को भी लौटना पड़ा।" मारसिंगय्या ने फुसफुसाया।
"हेग्गड़ती जी, यहाँ की सारी हालत हम सबने एक साथ देखी है। परिस्थिति जैसा आपने कहा, दिल दहलानेवाली है। हम ही अगर अधीर हो बैठे तो उस बच्चे की माँ की क्या दशा होगी: अच्छा किया कि आप बाहर आ गयीं। उनके सामने ऐसा करती तो शायद उसे देखकर ही उनके प्राण-पखेरू उड़ जाते। मैं देख रही हूँ कि आप कुछ असहनीय दुःख का अनुभव कर रही हैं। इस दुःख भार को हल्का करना हो तो उसे दूसरों के साथ बाँट लेना चाहिए।" एचलदेवी बोली।
202 :: पमहादेवी शान्तला : भाग दो