________________
सकता "
"तो क्या आप भी मुझ पर विश्वास नहीं रखते? जो कुछ मैं कहूँगी वह सब नमक-मिर्च लगाकर ही कहूँगी, यही आप सोचते हैं? मुझे सताना ही आपको पसन्द है न?"
“बको मत, जरा जबान पर काबू रखो। जो चाहे कहने के लिए आजाद हो गयी न? मैं भी कहूँगा, तुम भी हो। सच्चियाँ अब सवानी हो गयी हैं। ये ही निर्णय कर लेंगी।"
"तो क्या सभी बच्चियों से कहेंगे?"
“हाँ, मेरे घर में क्या सब गुजरा है, वह सभी बच्चियों को मालूम होना चाहिए। मालूम होने पर ही भावी परिस्थितियों का सामना करने के लिए उन्हें साहस होगा। दडिगा, दड़िया...!"
मालिक की इस ऊँची आवाज को सुनकर नौकर दडिगा भागा भागा आया । "बच्चियाँ कहाँ हैं" मरियाने ने पूछा।
"हेरगड़तीजी की बेटी के साथ कमरे में हैं ।"
“शान्तला आयी है? कब आयी" पद्मला ने पूछा ।
" आपको खोजती हुई आर्य, कुछ देर पहले ही । मैंने जब कहा कि आप मालिक से बातचीत कर रही हैं तो वहीं कमरे में बैठ गयीं ।"
पद्मला ने पिता की ओर इस तरह देखा मानो पूछ रही हो कि अब क्या करें? "दडिगा, जाओ, सबको मेरे कमरे में ले आओ ।" मरियाने ने कहा । ""मैं खुद जाकर बुला लाऊँगी।" कहकर पद्मला चली गयी। दडिगा लौटकर अपने काम पर लग गया।
" उससे सब कह देंगे?" चामब्बे का फिर वही सवाल था । "मैं कुछ भी करूँगा। तुम्हें मतलब?" दण्डनायक गरज पड़े। “आपकी विचारशक्ति लुप्त होती जा रही है, इसीलिए शायद महाराज ने आपको युद्ध क्षेत्र में जाने नहीं दिया।"
मरियाने ने गुस्से में लाल होकर दण्डनायिका की ओर देखा। उनके होठ काँप रहे थे। एक-दो मिनट तक इसी तरह देखते रहने के बाद कुछ बोले बिना झटके से अपने कमरे में चले गये।
असल दुःख से बोझिल हो दण्डनायिका घुटनों के बीच सिर रखकर सिसक-सिसककर रोने लगी।
शान्तला को देखते ही पद्मला समझ गयी कि वह शरणस्थली ले जाने के लिए आयी है। उसने अपने पिता की इच्छा के बारे में बताया तो सब एक साथ दण्डनायक के कमरे की ओर चल पड़ीं।
194 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो