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साधारण परिजन ही हैं। महामुनि के आशीर्वाद और वान्तिका दंवी के अनुग्रह से पल्लवित इस कन्नड़ साम्राज्य ने पिछले एक साल के दौरान काफ़ी प्रगति की है। राष्ट्र धीरे-धीरे विस्तृत होता, उन्नति कर रहा है।
पोय्सल वंशी सहज ही उदार प्रवृत्ति के हैं। उनमें असूया नहीं, वे सत्यवादी हैं-ये सब बातें राजपरिवार के ही लिए नहीं कही गयी हैं, बल्कि यह प्रत्येक नागरिक, जो भी इस राष्ट्र में है, के लिए लागू हैं। हम इस बात को गर्व के साथ कह रहे हैं। हम अभी छोटी आयु के हैं, हममें श्रद्धा, धैर्य और उत्साह भरने के लिए और राष्ट्र पर संकट आने पर राष्ट्र-रक्षा के लिए आप सब तैयार हैं-इस बात की घोषणा करने हेतु इस वार्षिकोत्सव समारम्भ के सन्दर्भ में आप एकत्रित होकर राजधानी में पधारे हैं। आप सबने जिस प्रकार हममें धैर्य-स्थैर्य भरकर उत्साहित क्रिया वैसा ही आप लोगों में उत्साह है, ऐसा हमारा विश्वास है। जनता की सामूहिक शक्ति ही राष्ट्र की शक्ति है। कल आपमें बहुत-से अपने-अपने स्थान पर लौटेंगे। कुछ लोग यहाँ राजधानी में ठहरेंगे। इसका कारण यह है कि राष्ट्र के अनेक युवकों ने सैनिक शिक्षण पाने की इच्छा प्रकट की है। ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए यहाँ ठहराकर उन्हें शिक्षित करने की व्यवस्था की गयी है। राजधानी में ऐसे भी अनेक लोग होंगे जिन्हें इस बात की जानकारी न हो इसलिए खुद हम इस बारे में बता रहे हैं। राज्य के अधिकारियों को इस बात का निर्देश है कि प्रत्येक नागरिक को शिक्षित होने का मौका दिया जाए। अब भी जो शिक्षण पाना चाहेंगे, वे हेग्गड़े मारसिंगय्या जी को बता दें, वे इसकी व्यवस्था कर देंगे। हम केवल राष्ट्र और प्रजा के हितों की रक्षा करने के लिए ही प्रतिनिधित्व करते हैं। जनता ही राष्ट्र का बल है। पोय्सल सिंहासन के प्रति निष्ठावान होने की प्रतिज्ञा हम सब आज करें। पोय्सल राज्य किसी के लिए काँटा बनकर न रहे और किसी के सामने झुकं भी नहीं। इसीलिए हमारा शार्दूल-ध्वज सिर उठाकर आसमान में फहरा रहा है। उस ध्वज को सदा राष्ट्र पर विराजमान रखने के लिए निष्ठा के साथ सब एक होकर रहेंगे, जिएँगे। यह हमें तृप्ति, शान्ति, समाधान और सन्तोष देता रहेगा, इसी का आश्वासन देता हुआ फहरा रहा है यह हमारा शार्दूल लांछनयुक्त ध्वज ।' कहकर बल्लाल महाराज ने अपने दायें हाथ का अंगूठा ऊपर उठाया। उस हाथ का कंकण, राजमुद्रा, अंगूठियाँ सब चमक उठीं। सम्पूर्ण जन-समूह एक कण्ट से बोल उठा, ध्वज की जय हो! पोयसल राज्य चिरायु हो!" दसों दिशाएँ गूंज उठीं। भीड़ में से किसी ने ऊँची आवाज़ में घोषित किया, "महाराज बल्लालदेव...''
जनता ने उद्घोष किया, "चिराय हों।" फिर नारा लगा, 'पोयसल साम्राज्य की" और जनता ने 'जय हो'' का घोष किया। "पोय्सल साम्राज्य विजयी हो,
1GB :: पट्टपहाटेची शान्तला : भाग दो