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न?'
"अप्पाजी, जो बात मुझे पसन्द नहीं उसे मत छेड़ो।"
"जब तक निश्चित रूप से यह नापसन्दगी साबित न हो तब तक निर्णय नहीं करना चाहिए। अब इस तरह युट-घुटकर मरने से राष्ट्र के लिए लड़कर मरे तो जीवन सार्थक होगा -यह समझकर महविनायक की बेटी ने निर्णय किया है ऐसा..."
"हेग्गड़े की बेटी ने कहा होगा शायद । वही हमारे छोटे अप्पाजी के लिए वेद वाक्य है न?" बल्लाल ने व्यंग्य किया।
"सच है। मुझे हेग्गड़े की बेटी की बात पर विश्वास है। परन्तु आज सन्निधान से बातचीत करने के लिए बड़ी एक कारण नहीं है। सन्निधान महाराज हैं, वह दण्डनायक की बेटी हैं। इस बात को भूल जाइए। एक पुरुष और एक नारी परस्पर प्रेम करके एक होकर जीने का निर्णय करें और उसके सफल होने से पहले, किसी अज्ञात और काल्पनिक कारणों से प्रभावित होकर यदि दूर हो जाएँ तो कितनी दुःखदायक स्थिति हो जाएगी-यह विचारणीय हैं।"
''कारण अज्ञात और काल्पनिक हैं-ऐसा कहने के लिए क्या आधार है?" "मैं नहीं जानता।"
"सकारण निर्णय हो चुका है। कहने पर छोटे अप्पाजी को विश्वास करना वाहिए न
''सन्निधान यह न समझें कि मुझ उनकी बात पर विश्वास नहीं। इस सन्दर्भ से किसी दूसरे को दुःख का अनुभव करना पड़े तो वह दुःख सकारण है या नहीं, इस बात का निश्चय होना आवश्यक है न?" । ___ "किसे निश्चय होना चाहिए: छोटे अप्पाजी को"
"इस निर्णय से जिसको दुःख हुआ है उस दुःखी हदय को ‘यह निर्णय सही है। इस बात का निश्चय होना चाहिए।"
"जिन्होंने ग़लती की है उन्हें इस बात का ज्ञान रहता है।"
"किसी ने ग़लती की है तो मान भी लें, पर जिसने ग़लती न की हो तो भी यह मान लें?"
'इस वर्तमान सन्दर्भ में ऐसी सम्भावना ही नहीं, अप्पाजी। यह महाभयंकर अपराध है।"
'वह क्या है, सो सन्निधान बता दें तो अच्छा । माँ को भी इस विषय में कुछ भी जानकारी नहीं है।"
"प्रभु की आज्ञा रही हैं। इसलिए इस विषय को किसी से नहीं कहेंगे।" ''इसके माने"
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दी :: 176