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क्या सम्बन्ध है? यह बुमा-फिराकर नाक पकड़ने का चक्कर क्यों? महाराज खुट हो मुझसे पूछ सकते थे। यह तो ऐसा हुआ कि गाय बीमार हो और बछड़े को चिकित्सा करें। ऐसा क्यों?–यों पद्मला का पन कई सवालों में उलझता ही चला गया। तभी उसे याद आया कि उस दिन हेगड़े के घर मिले ताबीजों के बारे में माता से कहने पर उनका यह कहकर साफ़ इनकार करना कि ये हमारे नहीं, और पिता का यह कहना कि ये हमारे ही हैं, इन सबके बाद इन तावीज्ञों के बारे में सबका मौन हो जाना-ये सब घटनाएँ एक-एक करके मानस-पटल पर अंकित होती गयौं । वह फिर सोचने लगी-क्या इनमें मेरी मां का हाथ है। वही मेरे भविष्य के लिए रोड़ा बन गयीं क्या. वैसा हुआ हो तो आगे मेरा क्या होगा
शान्तला ने सोचा, इसको यो चिन्ता करते बैठे रहने देना ठीक नहीं। इसलिए उसने कहा, "राजमहल का वातावरण केवल ऊहापोह के कारण बदल गया हो, तो उसे ठीक किया जा सकता है। लक्ष्य साधन करनेवालों को समस्या का साहस के साथ सामना करना चाहिए, उरकर पीछे नहीं हटना चाहिए। इस विषय में आपकी बहिन भी मदद दे सकेंगी. मेरी यह धारणा है।" ___ "हो सकता है।" पद्मला के मुँह से इतना ही निकला। उसने शान्तला की ओर देखा तक नहीं। इतने में इन्हें हूँढती चामला भी आ गयी। चोली, "ओह, आप दोनों को कितनी देर में देह रही है। आप लोग यहाँ बैठी हैं!"
''क्यों, कोई काम था?" शान्तला ने पूटा।।
"हमारी गुरुजी बुला रही हैं।...यह क्या दीदी मुँह फुलाकर गुमसुम बैठी हैं?" कहती हई चामला ने पदाला की ओर देखा। __ “इसके बारे में घर पहुँचकर तुम्हें बताएँगी। आप दोनों को उसके हल के ग़स्ते ढूँढने होंगे। अब चले। गुरुजी के पास चलेंगी?" कहती हुई शान्तला पाला के कन्धे पर हाथ रखकर ज्छ खड़ी हुई। तीनों गुरूजी के पास चली गयीं।
सोच-विचारकर बिट्टिदेव ने जैसी सलाह दी, वैसा ही किया गया। घटनाएँ भी उसी तरह हुईं। जग्गदेव ने अपनी बड़ी सेना के साथ वेदावती नदी के उत्तर में किनारे-किनारे चलकर डेढ़-दो कोस आगे नदी पार करके देवनूर पर हमला कर दिया था। शत्रु-सेना का सामना करने के लिए चिण्णम दण्डनाथ के नेतृत्व में वहाँ सेना तैयार थी। उनकी मदद के लिए छोटे चलिकेनायक और रावत मावण नैयार थे। चिण्णम दण्डनाध की सेना इतनी बड़ी नहीं थी कि वह शत्रु का सीधा सामना कर सके। इसलिए उसने पद्य युद्ध शुरू कर दिया जिससे शत्रु सेना आगे भी न बढ़े. और आतंक भी फैला रहे। इस बीच उसने जग्गदेव की सेना की गतिविधि
186 :: पट्टमहादेची शान्तला : भाग दो