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मुख्य सेना होगी और यह राजधानी को रक्षक-सेना बनकर रहे। चिण्णम दण्डनाध की सेना अचानक शत्रु-सेना पर धावा बोल दे और उसे पीछे हटने का मौका दिये बिना देवनूर की ओर से हटाकर दारसमुद्र की ओर आने दे। पीछा किये जाने से बचने की जल्दी में शत्रु-सेना इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाएगी कि पीछे क्या हो रहा है। बची हुई शत्रु-सेना रसद, मण्टार आदि के साथ धीरे-धीरे पीछे पीछे आने लगेगी। पाचण दण्टनाथ अपनी सेना को दो भागों में विभक्त करें। एक टुकड़ी को शत्रु-सेना के बीच हमला करने भेजें और युद्ध करनेवाली शत्र-सेना को रसद की आपूर्ति न हो सके, ऐसा इन्तज्ञाम करें। दूसरी टुकड़ी शत्रु-सना पर पीछे सं आकर धावा बोले और उसकी रसद पर कब्जा कर ले। अपने क्षेत्र का परिचय हमें जितना हैं, उतना शत्रुओं को नहीं, इसलिए उनकी वह रसद, भण्डार और उन स्त्रियों का जत्था-यह सब राजधानी के उत्तर-पूर्व के शरण-स्थानों में इस तरह भेज दिया जाय कि शत्रुओं को इसका पता भी न चले। बाद में राजधानी की सेना के साथ आकर मिल जाएँ।"
जब रसद, भण्डार उन शत्रुओं को नहीं मिलेगा तो समझ लीजिए कि उनकी आधी शक्ति तो यों ही समाप्त हो जाएगी। लेकिन ध्यान रहे कि इससे वे क्रोधित होंगे और अनेक निरपराधियों को उनका शिकार बनना पड़ेगा।'' नागिदेव ने कहा।
"ये निरपराधी कौन?" बिट्टिदेव ने पूछा।
"माचण दण्डनाथ की सेना को दो भागों में विभक्त कर एक भाग को शत्रु-सेना के बीच में भेज दें तो वह शत्रु-सेना के बीच अटक जाएगा या नहीं? आहार सामग्री के न मिलने पर तो शत्रु-सेना की दृष्टि पीछे की ओर पड़ेगी। रसद की रक्षक-सेना और उसके लिए पी लौट आनेवाली शत्रु-सेना, इन दोनों के बीच पें हमारी सेना की टुकड़ी अटक जाएगी। उस समय हमारी उस सेना का वह भाग यदि नष्ट हो गया तो दूसरा भाग युद्ध में ख़त्म हो जाएगा या नहीं? इसके बाद बह शत्रु-सेना रास्ते में पड़नेवाले छोटे-छोटे गांवों को बेरहमी से मिटा देगी। ऐसी सम्भावना हैं न:' नागिदेव ने अपनी सूझ के अनुसार राय दी। ___यों डरने से युद्ध जीतना सम्भव होगा क्या? युद्ध का मतलब है कि उसमें
छ योद्धाओं को और कल निरपराधियों को मरना ही पड़ता है। शत्रुओं की शक्ति को खत्म करने के लिए राजकुमार की सलाह बहुत ही उचित और ठीक लगती है। चिपणम दण्डनाथ जी से विचार-विमर्श कर हम उनकी सेना को अपनी सेना में सम्मिलित कर लेंगे और इस सम्मिलित सेना को राजकुमार के आदेश और आवश्यकता अनुसार तीन-चार भागों में विभक्त करेंगे। मैं, चिण्णम दण्डनाथ, छोटे चलिकनायक और रावत पायण, सब मिलकर विजब पाएँगे। उनकी गज-सेना को
188 :: पट्टमहादेवी शान्तला ; भाग दी