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ऐसी जगह लाएँगे जहाँ से वह आगे बढ़ने न पाए। उसे यों लाधार कर राजधानी के पास ले आएँगे और तब हमारी सेना उसका सामना करेगी।" माचण दण्डनाथ ने कहा।
इस तरह की व्यवस्था करने के बाद माचण दण्डनाथ जैसे आया था वैसे ही लौट पड़ा। अपनी पत्नी और बच्चों तक को देखने नहीं गा ! लसरे गड-शिविर में पहुँचते ही चिण्णम दण्डनाथ, छोटे चलिकेनायक और राक्त मायण, इन तीनों को बुलवा भेजा और विचार-विमर्श किया । यो व्यवस्था की गची-खुद पहले हमला शुरू करेंगे और शत्र-सेना को राजधानी की ओर ले चलने की कार्रवाई करेंगे। इधर चिपाम दण्डनाथ अपनी सेना के साथ रसद-रक्षक सेना और शत्रु-सेना के बीच धावा बोल देंगे, शेष दोनों पीछे से शत्रु-सेना शिविरों पर आक्रमण करेंगे। मायण की सेना अधिकांशतः घुड़सवारों की ही धी। चिण्णम की सेना में घुड़सवार भी धे और पैटल सिपाही भी। दोरसमुद्र में जैसे बिट्टिदेव ने सलाह दी थी, वैसी ही सारी व्यवस्था हुई। एक परिवर्तन हुआ या यह कि चिण्णम के बदले माचण पहले हमला करें।
पोयसलों को एक बात की जानकारी नहीं रही। जग्गटेय साधारण व्यक्ति नहीं धा! काकतीय प्रोल को हराते समय उसने जिस युद्ध-तन्त्र का उपयोग किया था, उसी तन्न से काम लेने की योजना उसने बना रखी थी। जिरह-बखार से लैस होने पर भी सिपाही साधारण नागरिक जैसे रहें, खासकर व्यापारियों की तरह अनंक दलों में गाँव-गाँव के बाजारों में दुकानें फैलाकर व्यापारियों का-सा स्वाँग रचकर सबकी आँखों में धूल झोंकते हुए ये दल बढ़ते जाएँ और दोरसमुद्र और कलसापुर के बीच के जंगल में पहुँचकर अपने साथ लाये हुए शस्त्रास्त्रों को तैयार रखकर नायक को आज्ञा की प्रतीक्षा करें, ऐसा निर्देश उन्हें दिया गया था। वे उसी तरह प्रतीक्षा में रहे। ___ माचण के हमला करते ही शत्रु-सेना ने भारी प्रमाण में उन पर धावा बोल दिया। माचण भयंकर युद्ध का प्रदर्शन करते हुए अचानक पीछे हटने लगा। इसे देखकर जग्गदेव अपनी सेना के गज विभाग को कुछ पीछे हटाने की आज्ञा दं, अपनी अश्व-सेना को पोयसल सेना का पीछा करने का आदेश देकर शेष सेना के साथ अश्व-सेना के साथ हो लिया। जग्गदेव को इस बात का अहसास भी नहीं हुआ था कि पोव्सल-सेना अचानक उसकी सेना के बीच आ सकती है। अपने गुप्तचरों से उसे मालूम हो गया था कि कलसापुर, सखरायपट्टण और चावगज में पोसल सेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी है। उसका उद्देश्य था कि रास्ते में जितना • सम्भव हो सके, कम-से-कम हानि लेते हुए बढ़ते जाएँ और दोरसमुद्र पर ही हमला करें। इसलिए उसने सखरायपट्टण का रास्ता ही छोड़ दिया और दूसरे ही मार्ग से
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: [89