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एक ओर शिक्षण चल रहा था और दूसरी और व्यवस्थित सैन्य की तीन टुकड़ियां सखरायपट्टण, कलसापुर और यावगल जा पहुँची थीं।
ख़ुद महाराज बल्लाल ने विट्टिदेव से विचार-विमर्श कर युद्ध के नेतृत्व को अपने ही ऊपर लेने का निर्णय किया था। परन्तु बुजुर्गों की ओर से एकमत सम्मति इसके लिए प्राप्त नहीं हो सकी थी। वीर पति की वीर पत्नी महामातृश्री ने भी युद्ध में अपने बच्चों को अगुवा बनने के बारे में प्रोत्साहन नहीं दिया ।
मैं
"यह क्या माँ, उस दिन जब युद्ध के विषय में कुछ भी नहीं जानता था तब युद्ध में जाने को तैयार हुआ तो सन्तोष से आशीर्वाद देकर भेजा: जब आपकी इस सम्मति का अर्थ मेरी समझ में ही नहीं आता?" बल्लाल ने पूछा ।
“पोसल राज्य में अब जबकि स्त्रियाँ युद्धक्षेत्र में आने को तैयार हो रही हैं तब क्षत्रिय रक्त से इन धमनियों में बहते हुए, समस्त सैनिक शिक्षण पाये हुए एवं प्रजा संरक्षण की जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेनेवाला राजघराना ही पीछे रह जाए तो प्रजा क्या कहेंगी, माँ?" बिहिदेव ने भी सवाल किया।
"क्या कहा- स्त्रियाँ युद्ध में आएँगी?"
"हाँ, दण्डनायक और आप लोग स्वीकार करें तो हेगड़ेजी की पुत्री सैनिक शिक्षण पाने के लिए युवतियों के जत्थे को तैयार करेंगी। दण्डनायक की पुत्रियों भी इस जत्थे में रहेंगी।" माँ को बताने के बहाने वह अपने भाई की प्रतिक्रिया भी देखना चाहता था। इसी मतलब से उसने भाई की ओर देखा ।
बल्लाल को इसकी जानकारी नहीं थी, इसलिए उसने आश्चर्य से विहिदेव की ओर देखा ।
"पोटसल वंशी पुरुष जब चूड़ियाँ पहन लेंगे तब स्त्रियाँ यह काम करेंगी।" एचलदेवी ने कहा ।
"तो क्या वह ग़लत है माँ?"
"मैं यह नहीं कहती कि यह गलत है। स्त्रियों की रक्षा करना पुरुषों का कर्तव्य है । जब पुरुष अपने कर्तव्य का पालन न कर सकें तो स्त्री इस कार्य को कर सकती हैं। महिषासुर को मार सकनेवाले पुरुषों के न रह जाने ही के कारण देवी चण्डी ने चामुण्डी बनकर उसका संहार किया था। पोव्सल पुरुष ऐसे बने रहें जिससे स्त्रियां क्रोधित न होने पाएँ । बलिपुर में तुम्हारे जन्मदिन के अवसर पर जो वचन लिया था सो याद है?"
"वह तो पाय्सल स्त्री-पुरुषों के आपस में लड़ने के विरुद्ध था। अब तो बात पोप्सल के विरोधियों का सामना करने की है न?"
"तब देखेंगे जब यह साबित हो जाए कि आप लोग असमर्थ हैं।" "तो आपका यही मतलब है न कि महाराज को जो असम्मति जतलायी वह
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 175