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रेविमय्या ने यात समाप्त कर दी।
यौवराज्याभिषेक के आमन्त्रण की प्रतीक्षा करते हुए हैग्गड़े परिवार ग्राम में ही रहा। सिंगिमय्या और उनका परिवार, जी यादवपुरी से आया था, वापस चला गया।
युवरानी और राजकुमारों के राजधानी में लौट आते ही दो कार्यों के सम्बन्ध में निर्णय हुआ। एक, कुमार बल्लालदेव का यौवराज्याभिषेक महोत्सव और दूसरा, सिंगिमच्या को ग्राम में हेग्गड़े के पद पर नियुक्त करना और हेग्गड़े मारसिंगय्या को राजधानी में बुलाना। इसके लिए आज्ञा-पत्र निकाल दिया गया।
हेग्गड़े मारसिंगव्या अगहन के समाप्त होने के पर्व ही सपरिवार गजधानी में आ गये और फिर से अपना पहने का कार्यभार संभालना शुरू कर दिया। माघ के पहीने में ही यौवराज्याभिषेक करने का निश्चय हुआ था। इसलिए सभी लोगों को काम इतना अधिक करना था कि किसी को काम से फसत ही नहीं मिल रही थी। चामध्ये को भी कुछ कार्यों की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। यों तो दण्डनायिका फिर से हेग्गड़ती के राजधानी में आने से कुढ़ रही थी, फिर भी उस
ओर उसका विशेष ध्यान नहीं गया। अबकी उसके सोचने-विचारने का ढंग ही कुछ और त्यना था। अब वा सोच रही थी कि अपने इष्टार्थ को साधने का यह अच्छा मौका है। और अपने को बहुत अच्छी और निष्ठावान साबित करें। इसके लिए परिश्रम करने से मैं पीछे हटनेवाली नहीं... इस तरह की भावना प्रभुत्व में हो जाग! - ऐसा विचार कर उसने कायारम्भ करने की ओर पहला कदम उठाया। उसका यह निर्णय था कि पहासन्निधान, युबरानी जी और राजकुमार बल्लाल को अपनी कार्यदक्षता द्वारा वह सन्तुष्ट कर लेगी। दोनों पुरुषों को सन्तुष्ट करना उसके लिए कोई समस्या नहीं थी। परन्तु युवरानी जी को समझना उनके अन्तरंग तक पहुँचना एक कठिन कार्य समझ रही थी। इसीलिए युवरानी जी के निकट आने के लिए उसने हेगड़ती और उसकी बेटी के ही जरिये मार्ग सुगम कर लेना सोचा। इसके लिए उसने उन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने तथा अपनी भलपनसाहत दिखाकर उनके मन में अपने प्रति उत्तम भाव उत्पन्न करने के लिए अपने व्यवहार को रूपित कर लिया और उसी तरह बरतने लगी। ___इन लोगों में से किसी के मन में दण्डनायिका चामब्बे के लिए कोई सद्भावना नहीं थी। फिर भी उसके प्रति उदारता ही बरतते थे, यही कहना चाहिए। यह कहना ज़्यादा ठीक होगा कि इन लोगों ने बड़ी सहिष्णुता से उसके साथ बर्ताव किया। चामब्बे का सिर झुक तो गया फिर भी दाँच नहीं लगा। दिन गुजरते गये। यौवराज्याभिषेक के लिए मुहूर्त निश्चित हो गया। बड़े पैमाने पर सारे
पट्टमहादेवी शान्तला : पाग दो :: 14।