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आया था। वह आज्ञा की प्रतीक्षा में खड़ा रहा।
बल्लाल ने कहा, "रेविमय्या, किवाड़ बन्द करके तुम बाहर रहो, किसी को अन्दर न आने दो।"
रेघिमण्या किवाड़ बन्द करके बाहर खड़ा रहा।
"कहिए दण्डनाथ जी, सुना कि किसी जरूरी काम पर आये हैं। क्या हैं, बताइए।"
"महादण्डनायक जी से गुप्त खबर आयी है। मालव जग्गदेव के नाम से अपने को प्रकट करनेवाला पट्टियोंबच्चुपुर के जग्गदेव भारी सेना के साथ दोरसमद्र पर हमला करने के लिए चला आ रहा है। इसलिए सन्निधान भी नहीं रहेंगे तो सन्निधान की रक्षा और सन्निधान के साथ विचार-विमर्श करने में भी सुविधा होगी। इसलिए सन्निधान से राजपरिवार के साथ दोरसमुद्र के लिए तुरन्त रवाना होने की प्रार्थना करते हुए निवेदन करने का आदेश मिला हैं। बताया है कि प्रधानजी की सलाह के अनुसार यह सन्देश भेजा गया है। आज्ञा चाहिए।"
'इस हमले का कारण?' बल्लाल नं पूछा।
'इस सम्बन्ध में कोई विवरण मालूम नहीं। राजधानी से जो खबर मिली हैं, उससे ज़्यादा कुछ भी मुझे मालूम नहीं।" ___"वर्तमान राजनीतिक पृष्ठभूमि के आधार पर आपको कुछ तो सूझना चाहिए न?'
डाकरस ने कहा, "शायद वे सोचते हों कि पोय्सल राज्य अब अप्रबुद्ध युवकों के हाथ में है, और उनकी शक्ति को कुण्ठित कर तोड़ डालने के लिए वही अच्छा पौका है।"
'तो आपकी भी यही धारणा है?"
"बाहर की जनता की धारणा वस्तुस्थिति के ज्ञान से अपरिचित धारणा है। राज्य के अन्दर की राज्य-निष्ठा रखनेवाली, किसी प्रजा की यह भावना नहीं हो सकती। गुप्त सन्देश जिस ढंग से भेजा गया है, यही लगता है कि देर उचित नहीं। इसलिए यात्रा की तैयारी करूँ"।
"तो क्या यह निर्णय हो चूका है?"
“सन्निधान को परिस्थिति का बोध है और राजधानी से आग्रह भी जब हुआ है, तभी इस विश्वास से पूछा कि सन्निधान की स्वीकृति होगी ही।"
'आफ्को मालूम हैं कि दौरसमुद्र में जाकर रहने की हमारी इच्छा नहीं है, तब भी यह बात कह रहे हैं?"
"हाँ, सन्निधान की इच्छा मुझे मालूम है। सन्निधान की व्यक्तिगत दृष्टि से यह जरूरी है-यह भी मैं जानता हूँ। परन्तु वर्तमान परिस्थिति में राष्ट्रहित की
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 163