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दृष्टि से राजधानी से प्राप्त सलाह मानने योग्य है।"
"क्या छोटे अप्पाजी, तुम भी दण्डनाथ की राय से सहमत हो?" ___ "प्रजा का हित गजा का प्रथम कर्तव्य है। दूसरे जब हमला करें तब महाराज वहाँ उपस्थित रहेंगे तो प्रजाह औं बाइस कोना प्राधानिक है। अनुपस्थिति का परिणाम अनेक प्रसंगों में राजनीतिक दृष्टि से घातक भी हो सकता है। इसलिए राजधानी से जो सलाह अव पेश है वह मुझे भी टीक अँचती हैं।" बिट्टिदेव ने कहा। ___ "जैसे दण्डनाथ को कारण सूझा से तुमको भी इस हमले का कारण कुछ सूझा होगा न"
"जब प्रभु के सिंहासनारोहण के लिए मुहूतं निश्चित हुआ था तब चालुक्य चक्रवर्ती विक्रपादित्य ने यह कहकर कि उन्हें यह बात पहले क्यों नहीं सूचित की गयी, प्रभुजी के अधिकार-सीमा में शामिल बलिपुर प्रदेश वापस ले लिया था, वह घटना सन्निधान की समृति में होगी-ऐसा मेरा विश्वास है।"
'हाँ, स्मरण हैं। परन्तु उस घटना का प्रस्तुत जग्गदेव के इस हमले से क्या सम्बन्ध हैं?"
"प्रभुजी चालुक्यों के दायें हाथ बने रहे। अपने प्राणों की परवाह न करके अनेक प्रसंगों में उनका साथ दिया, प्रभु ने। खासकर धारानगर के हमले के सन्दर्भ में चक्रवर्ती और सम्राज्ञी की रक्षा करने में और उनके लिए विजय प्राप्त कराने में प्रम में जो बुद्धिमत्ता एवं सामर्थ्य दिखाया था, वह प्रसिद्ध ही है। पोसलों की मंसी चालुक्यों की शक्ति का दूसरा मुख है। इसे दुनिया जानती है। बलिपुर के इरा अधिकार-परिवर्तन से लोगों को कुछ ऊहापोह करने के लिए एक मौका मिल गया। वे अन्दाज लगाने लगे कि पोय्सल और वालुक्यों में कुछ अनबन है, इस कारण चालुक्यों का बल कण्ठित हो गया है। अब चालुक्यों की पकड़ से छूटने की इच्छा सामन्तों में होना तो सहज ही है। शायद जग्गदेव का भी यही उद्देश्य रहा हो। जग्गदेव की इस अभिलाषा को जानकर चालुक्यों ने उसे प्रेरणा देकर इस तरफ़ हमला करने के लिए भेज दिया होगा। जग्गदेव को राज्य-विस्तार और स्वातन्त्र्य, यही चाहिए न?"
"वह स्वतन्त्र बनें और राज्य का विस्तार करें तो इससे चालुक्यों का क्या फ़ायदा होगा कल वही चालुक्यों पर भी हमला कर सकता है?" बल्लाल ने सवाल किया।
"तात्कालिक रूप से बला तो टल जाएगी न। इससे सामयिक शान्ति तो होगी। बाद की बात के बारे में अभी चिन्ता क्यों? विक्रमादित्य शक्रपुरुष बनने की चाह करनेवाले थे परन्तु उनकी कभी दूरदृष्टि नहीं रही। समय-समय पर अपने
thi:: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो