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सर्वतोभद्र यन्त्र के उन तावीजों की वाल वहीं ख़त्म हो गयी थी। इनके बारे में फिर किसी ने आपस में कोई बात नहीं उठायी थी। सिर्फ पद्यला के मन में इनके प्रति कुतूहल अवश्य था। मगर इस कुतूहल का कोई कारण उसकी समझ में नहीं आ रहा था। उसने बहिन चामला से इस बारे में विचार-विमर्श करने की भी बात सोची। जब पिताजी ने यह कहा कि ये तावीज़ हमारे ही घर के हैं तो माँ ने क्यों कहा कि ये हमारे घर के नहीं। बिना कारण तो माँ ऐसा कहेगी नहीं। उसके मन में आया कि इसके बारे में माँ से ही पूछ ले मगर इस डर से नहीं पूछा कि पता नहीं क्या उल्टा सीधा बोल जाए। बहुत सोच-विचार के बाद उस विषय में पद्मला ने आकर चामला से बातचीत की। चामला को इस सम्बन्ध में कोई रुचि नहीं थी। अपनी आशा के सफल न होने के कारण वह मन-ही-मन बहुत दुःख का अनुभव कर ही रही है। उसके साथ यह धुन भी लगी है। इस अनावश्यक सनक को उसके मन से हटाना बहुत जरूरी है इसलिए इसके भूल को खोजने के बदले उस विषय को वहीं खत्म कर देना अच्छा है- यह सोचकर चामला ने अपनी दीदी को सलाह दी, “दीदी, तुम्हें माँ के सब ढंग मालूम हैं। वह सदा हर बात में सन्देह करती रहती हैं, कह बैठती है। उसकी खोज करने की कोशिश करने लगेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। हवा में तलवार घुमाने से वह कटती नहीं, घुमाने का भ्रम ही हाथ रह जाता है। मेरा कहना मानो तो वर्तमान स्थिति में चुप रहना ही अच्छा है।" पद्मला को चामला की यह सलाह ठीक लगी । इसलिए यह बात यहीं ख़त्म हो गयी। दीरसमुद्र में इस सम्बन्ध में किसी ने कोई बात नहीं उठायी।
दोरसमुद्र में इसकी चर्चा नहीं हुई, यह सच है । मगर यह तो नहीं कह सकते कि बेलापुरी में इस सम्बन्ध में बात न उठी हो। क्योंकि महादण्डनायक के घर की खाद के साथ इन तावीज़ों का हेग्गड़े के घर के अहाते में पहुँचाया जाना, फिर उन्हें प्रधानजी के समक्ष हेगड़े द्वारा दण्डनायक को दिया जाना आदि सारी बातों का वृत्तान्त महाराज बल्लाल को मालूम हो गया था। अपने पिता प्रभु के जीवित रहते हुए दण्डनायक के घर में घटी अंजन-क्रिया एवं इस क्रिया में दण्डनायिका की भूमिका आदि बातों के बारे में प्रधानजी के साथ प्रभु ने जब विचार-विमर्श किया तो उस समय वह स्वयं उपस्थित थे। इसकी याद भी महाराज के मन में हरी थी | अपना प्रेम अन्धा है और इससे भला नहीं होगा, कल महाराज बननेवाले की ग़लती के कारण राष्ट्र का अहित होना ठीक नहीं इसी के ख्याल से खुद इस विषय को न बताकर, विचार-विमर्श करते समय समक्ष बिठाकर सारी बात करके जो दूरदर्शिता प्रभु ने दिखायी थी, उससे बल्लाल की आँखें खुल गयी थीं । फलस्वरूप इस अन्ध-प्रेम का बहिष्कार करने का निश्चय उसने कर लिया था । सीधे प्रधानजी को या महादण्डनायक को अपना निर्णय सुनाकर उन्हें दुःख नहीं
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो : 159