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इन्तजाम हो रहे थे। परन्तु इस मुहूर्त के एक पखवारे के पहले महाराज विनयादित्य पार्श्व-बायु के शिकार हो गये। बिस्तर की शरण ले ली। इस वजह से मन्त्रणा सभा बैठी और वर्तमान परिस्थिति पर विचार हुआ। और निर्णय लिया गया कि महाराज की स्वीकृति के अनुसार कुमार बल्लाल को महाराजाभिषिक्त कर सिंहासन पर आसीन कराया जाए। इसके अनुसार ही घोषणा कर दी गयी।
घोषणा सुनते ही चामब्वे के दिमाग़ में शैतान घुस बैठा। वह सोचने लगी कि इसमें कुछ कुतन्त्र है। सम्भव है कि कल-परसों यह ख़बर भी फैल जाए कि कुमार बल्लाल का विवाह शान्तला से होगा तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। इसका पता कैसे लगाएँ? यह तो वह जानती ही थी, बल्लाल पहले शान्तला को उदासीन भाव से देख रहा था। लेकिन अब एक सम्मान का भाव उसमें आ गया है, उसके प्रति! इसका रहस्य जानना चाहिए। शान्तला की ऐसी ही स्थिति हैं। चल्लाल से हँसते-हँसते बातचीत करने की रीति को देखने पर ऐसा लगता है कि अभी हाल में जो बेलगोल हो आये तब कुछ खास बातें हुई हों। इसलिए वह पाला की परवाह उतनी नहीं कर रहा है। भगवान भी कैसा मूर्ख है कि उसने उसे पद्मला से भी अधिक सुन्दर बनाया है। इस प्रकार दण्डनाचिका का कलुषित मन कुछ अण्ट-सण्ट विचार कर रहा था। उसका पता लगाने का सने निश्चय किया। पद्मला को भी शान्तला के साथ करने का विचार किया। और इस दिशा में कार्य-प्रवृत्त हुई। ____माँ ने जो कुछ कहा पयला वह सब ध्यान से सुनती गयी। उसे भी लगा कि यदि उस तरह हुआ तो उसमें आश्चर्य ही क्या है। महारानी बनने की किसे चाह नहीं होगी? शान्तला की भी इच्छा हो गयी हो। इसमें ग़लती ही क्या है? अब भी मेरा मन कह रहा है कि राजकुमार की इच्छा नहीं होगी। फिर भी इधर कुछ समय से राजकुमार को मेरे बारे में कुतूहल न रह जाने के कारण मों के कथनानुसार हो भी सकता है। कौन जाने? इस तरह पद्मला का मन डाँबाडोल हो रहा था। सत्य क्या हैं इसे जानने में कोई गलती नहीं। जैसे-जैसे मुझे इसके सत्यासत्य को जानने के लिए उपाय सूझेगा, उसके अनुसार जानने की कोशिश करूँगी-यह बात उसने अपनी माँ से कह भी दी।
एक दिन समय देखकर राजमहल के ओसारे में शान्तला को अकेली पाकर पद्मला ने कहा, "आपसे तन्हाई में मिलने का इरादा है। आप मान लें तो हमारे यहाँ चलेंगी।"
"आज नहीं। हो सकता है कि कल आऊँ।' शान्तला बोली। “आज कोई अन्य कार्य है?" "हाँ।"
142 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो