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स्तोत्र के बाद शान्तला ने भगवान के चरणों में प्रणाम किया।
"अम्माजी, अद्भुत! आज का स्वर-विन्यास उस दिन की तुलना में बहुत ही अच्छा रहा। उस पुरानी याद को भुला दिया। वास्तव में आज के गायन ने स्वामी के हृदयकमल को खिला दिया। तुम्हारे कारण ही पोयसल राजघराने और राज्य के लिए बाहुबली स्वामी का आशीर्वाद आज प्राप्त हुआ है। यड़े राजकुमार धन्य हैं।" कहकर पुजारीजी ने युवरानी जी से आरती उतारने की अनुमति माँगी। युवरानी जी ने अपनी सम्पति व्यक्त की।
आरती के बाद चरणामृत और प्रसाद लेकर थोड़ी देर वहीं बैठे और फिर सब इन्द्रगिरि से उतर आये। भोजनोपरान्त सब आराम करने अपने-अपने स्थान पर चले गये। युबरानी की इच्छा के अनुसार हेग्गड़ती माचिकब्चे और शान्तला उनके साथ रहीं।
उधर बल्लाल आदि दूसरी जगह लेटे धे। उदयादित्य को नींद आ गयी थी। परन्तु विट्टिदेव और बल्लाल यों ही लेटे रहे। उन दोनों के दिमाग़ में शान्तला के बारे में विचार घमड़ रहे थे।
बिट्टिदेव भो कुछ चकित हुआ था। वह अपनी ही आंखों का विश्वास नहीं कर सका घा कि शान्तला में एक वर्ष की अवधि में ही इतना बड़ा परिवर्तन हुआ है। ऊँचाई, काठी. मुटाई और यह अंगसौष्ठव, प्रभावपूर्ण मुखमण्डल, गम्भीर दृष्टि आदि इन सभी को देखकर इसको लग रहा था कि देवशिल्पी द्वारा निर्मित मूर्ति शायद इसी की तरह की होती होगी। मैं सचमुच भाग्यवान हूँ। उसके इस मौन स्वागत में भी कैसी आत्मीयता थी! उसकी आँखों में और होठों पर कैसा सन्तोष और प्रेम का स्पन्दन होता रहा ! अनिर्वचनीय सौन्दर्य! सिरजनहार के सिरजन में गुण और रूप दोनों की परिपूर्णता अगर कहीं है तो इस शान्तला के रूपसौष्ठव व व्यक्तित्व में है। शायद संसार-भर में ऐसी गुण-निधि और सौन्दर्य की खान अन्यत्र मिलना सम्भव नहीं । कभी एक दिन मेरे भाई ने इसमें आकार का अनुभव किया था पर वह भ्रान्ति थी। आज पता नहीं उसने क्या देखा? खुद ही प्रकट हो जाएगा। अगर मैं यह बात छेदूंगा तो उसको मेरी हँसी उड़ाने का मौका मिल जाएगा। मैं तो तब और अब एक-सा हो हूँ परन्तु ऐसा लगता है कि अप्पाजी में कुछ परिवर्तन अवश्य हुआ है। मैं भी यह देख रहा हूं कि उनका पहरने जैसा स्वभाव नहीं रहा। बह जल्दबाज भी नहीं हैं। पद्यता से अचानक भेंट हो भी जाए तो उसमें घोड़ी-सी आत्मीयता भी नहीं लक्षित होती। बेचारी दण्डनायिका की बेटी उसकी नजर से इस तरह क्यों उतर गयी उससे ऐसी कौन-सी अनहोनी हो गयी? भैया से ही पूछना चाहिए। राजधानी में पहुंचने पर तन्हाई कुछ कम रहेगी अतः यही कुछ कोशिश करके इसके बारे में उनका विचार जान लेना चाहिए।
131 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो