________________
की कोशिश कर दूंगी। काले हो तो कहो नहीं तो तुम्हारी इच्छा। मैं विवश नहीं करूंगी।"
म, अभी नहीं। मुझे इस सम्बन्ध में कुछ बातों को जानकारी और चाहिए। अब जानकारी पूरी हो जाएगी तब तुम्हें बताऊँगा, टीक है?"
"वैसा ही करो। हेगड़े भारसिंगय्या को प्रभु ने सब बातें बता ही दी होंगी। उनसे पूछने पर ऐसी बात भी मालूम हो सकेंगी जिन्हें तुम नहीं जानते होगे। कल उन्हीं से पूछो।"
"हो सकता हैं वे मुझे न भी बताएँ ।"
''तब तो तुमने उन्हें ठीक पहचाना नहीं । कल तुम युवगज वननेवाले हो और बाद में महाराज भी। अधिकारियों के साथ तुम्हारा सम्बन्ध अर्थहीन नहीं होना चाहिए। इसलिए तुम्हें सभी को अच्छी तरह परखकर समझ लेना होगा। और सब तुम्हें भी समझ सकें-इसके लिए मौक़ा भी देना होगा। प्रभु ने काफ़ी यत्न के बाद यह गुण पाया था। इसलिए वे सबके प्रेम और आदर के पात्र बन सके थे।"
"इस सबके लिए अनुभव भी तो होना चाहिए न?"
"बिना किसी पूर्वाग्रह के खुले दिल से अनुभव प्राप्त करोगे, तभी तुम आदर्श बन सकोगे।"
"एक समय था जब मैं पूर्वाग्रहग्रस्त था। अब नहीं। प्रभु के साथ युद्धक्षेत्र में न जाकर आपके साथ गया होता अथया राजधानी में रह गया होता तो वहीं का बहीं रहता, अबका अप्पाजी नहीं बनता। कुछ दूसरा ही अप्पाजी होता। प्रभु ने मुझमें जिस आदर्श भावना को भरा उस भावना ने मुझमें आवश्यक संयम और विशालभाव भर दिया है। इसलिए मैं आपके लिए भार-स्वरूप नहीं बनूंगा, माँ । प्रभ को आपने जो वचन दिया है, उसे पालन करने में मैं आपका सहायक ही बना रहूँगा, बाधक नहीं। मेरे लिए आपका आशीर्वाद ही पर्याप्त है।" भावोद्वेग से बल्लाल ने माँ के चरण छुए और उन्हें आँखों से लगाया।
भगवान की कृपा से तुम प्रजानुरागी राजा बनो और मुझे तुम्हें लोकप्रिय देखने का सौभाग्य मिले। बहुत देर हो गयी। आराम कर लो। सुबह तड़के ही यात्रा करनी होगी। पूर्वाह तक हमें बेलगोल पहुँचना है।" एचलदेवी ने कहा। सब अपने-अपने शयन-कक्ष में चले गये।
निश्चित कार्यक्रम के अनुसार नियमित समय पर वे बेलगोल पहुँचे। स्थागत के बाद मुकाम पर गये। फिर बेलगोल की पुष्पकरिणी देवबेलगोल में स्नान कर भगवान बाहुबली के दर्शन के लिए इन्द्रगिरि पहाड़ पर चढ़ गये।।
रेविमव्या और बच्चे जल्दी-जल्दी चढ़ गये। युवरामी, हेगड़े दम्पत्ती धीरेधोरे। रक्षक दल के दो अंगरक्षक उनके पीछे-पीछे चढ़ रहे थे। यह सब प्रक्रिया
132 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो