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बेटी ते भी अधिक मानते और समझते हैं। फिर भी स्वतन्त्रतापूर्वक उनसे बातचीत नहीं कर सकती। राजकुमार छोटे हैं। इसलिए मेरी भावना हुई कि आपसे वार्ता करने पर मन का बोझ कुछ कम हो सकंगा।" बुवरानी बोली।
दण्डनायिका के अन्तरंग में अचानक कुछ उफान आया। चेहरे पर उत्साह के भाव आये। बोली, "मैं सदा राजपरिवार की सेवा के लिए तैयार हूँ।"
युवरानी ने घण्टी बजायी। दासी ने परदा हटाया। उन्होंने दासी से कहा, । 'राजकुमारों का अध्ययन चल रहा है ? जाकर शीघ्र देखकर आओ।''
दासी गयी और शीघ्र ही लौटकर बोली कि पाठ चल रहा है।
'ऐसा हैं तो इन बच्चों को भी वहाँ ले जाओ। पाट समाप्त होने तक बच्चे वहीं रहे। बाद में एक साथ सबके उपाहार की व्यवस्था हो।' युवरानी ने कहा ।
कोई दूसरा उपाय न देख दण्डनायिका की बेटियां दासी के साथ चली गयीं।
युवरानी जो बैंटी थीं। उन्होंने उठकर दरवाजा बन्द किया और साँकल लगा दी। फिर आकर बैठ गयीं। कहने लगीं, "दण्डनायिका जी, मुझे आगकल किसी पर विश्वास नहीं हो रहा हैं। किसी से सम्पर्क रखने की भी इच्छा नहीं होती। पस्तु दिन: जी भी दुश है। भुगो र सर ऐसा असाध्य बोझ डालकर मुझसे वचन लेकर छोड़कर चले गये। ऐसे मौके पर मुझे सबकी मदद की आवश्यकता है। आप शायद विश्वास न करें परन्तु उस सत्य को बता दें तो आपका हृदय भी काँप उठेगा, फट जाएगा।'
घुवरानी जी की बातें उद्वेगपूर्ण थीं। इस उद्वेग को रोकने के लिए कुछ देर तक मौन होकर बैठी रहीं। दण्डनायिका सन्दिग्ध दृष्टि से उनकी ओर देखती रहीं।
एक दीर्घ निःश्वास छोड़कर युवरानी ने कहा, "हमारे प्रभु ने वालुक्य चक्रवती की गौरव प्रतिष्ठा की और उनके प्राणों की रक्षा के कार्य में प्राणपण से सहयोग दिया। चालुक्य पिरियरसी जी का मान रखा और खतरे के समय में उनकी प्राण रक्षा की। और भलमनसाहत के साथ वापस ले जाकर उस धरोहर को सौंप दिया। इसका पोयसल राज्य को क्या प्रतिफल मिला, जानती हैं? हमने जो निष्ठा और विश्वास उन पर रखा था। उसका क्या पुरस्कार हमें मिला, आपको मालूम है।"
''क्या हुआ? मेरे मालिक ने भी मुझे कुछ बताया नहीं!''
''अगर आप कहें कि उन्होंने नहीं बताया, तब यही समझना पड़ता है कि आपने उनके विश्वास की पात्रता खो दी हैं।" __ "ऐसा तो कछ नहीं। राजकाज के बारे में वे मुझसे बातें नहीं करते। इस सबका स्त्रियों से क्या सम्बन्ध है? इसलिए नहीं बताया।' दण्डनायिका ने कहा। फिर भी युवरानी की बात ने दण्डनायिका के मन पर आघात किया था।
"अगर हम बता दें कि चालुक्य चक्रवती हमारे विरोधी बन गये हैं तो आप
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 125