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भारी दुःख मिल सकता है - इसकी कल्पना नहीं कर पाती। बुराई करें तो दुःख का मिलना तो अनिवार्य है ही । लोग इसे समझकर भी बुराई क्यों करते जाते हैं- - यह ऐसी समस्या है जिसका हल ढूँढने पर भी नहीं मिलता।"
दण्डनायिका को कुछ कहना चाहिए था। उसे लगा कि युवरानी ने जो कुछ कहा वह सब उसी के बारे में है । परन्तु वह इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थी कि उसने बुराई की है। उसने कहा, “चुवरानी जी की अगर किसी ने कोई बुराई की ही तो उसे देना आसान काम है। रानी की दुराई का साहस भी किसी को न होगा।" कहते समय गला कुछ रुँधने लगा या फिर भी साहस करके कह ही दिया।
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युवरानी जी सुनकर कुछ मुस्कुरायीं। बोलीं, मैंने ख़ास अपने बारे में सोचकर यह बात नहीं कहीं। बुराई युवरानी की करे या एक साधारण सिपाही की पत्नी की - दोनों बराबर हैं। बुराई किसकी की गयी, वह बुरा है या नहीं इस तरह सोचना ठीक नहीं। परन्तु हमसे उपकृत होकर भी हमारी ही बुराई करेंगे तो वे भगवान के सामने क्या उत्तर दे सकेंगे? अपनी बुराई की लोगों की आँखों से छिपा लेंगे लेकिन भगवान से तो छिपा नहीं सकेंगे! हैं न दण्डनायिका जी? यह सम्भव है कि बुराई करते वक़्त वह बुराई न लगे। परन्तु वह एक न एक दिन स्पष्ट मालूम हो आएगी कि वह बुराई है। तब बुराई करनेवाले खुद अपनी आत्मा को सान्त्वना नहीं दे सकेंगे। ऐसा ही है न? आप जरूर सोच रही होंगी, मैं यह सब क्यों बोल रही हूँ, हैं न दण्डनायिका जी?"
यह
"बिना किसी विशेष कारण के युवरानी जी कोई बात नहीं कहेंगी य सबको मालूम है।" - चों सीधा जवाब न दे सकने के कारण कुछ घुमा-फिराकर
कहा।
"मतलब ?"
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- "मतलब यह कि युवरानी जी अवश्य ही कहेंगी यह मुझे मालूम है ।" "युवरानी जी को यदि मालूम हो तो अवश्य कहेंगी। न मालूम हो तो क्या कह सकती हैं?"
दण्डनायिका अनजान बनकर पलकें मटकाती रही ।
“मुझे भी ऐसा ही हुआ करता है, दण्डनायिका जी। हमने जिसकी कल्पना नहीं की वह हो जाता है । परन्तु ऐसा क्यों हुआ इसका पता नहीं लगता। कारण न भालुम होने पर ऐसे ही किंकर्तव्यविमूढ़ रह जाना पड़ता है। पिछले एक वर्ष से तो मैं अकेली अलग-थलग घुटती रही हूँ। अपनी बात तक सुनाने को कोई नहीं है इसी वजह से मुझे बहुत परेशानी होती रही हैं। प्रभु जब तक जीवित रहे, मुझे कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा। महासन्निघान मुझे अपनी
124 पट्टमहादेवी शान्तला भाग हो