________________
विश्वास करेंगी, दाइनाचिका जी?"
"क्या यह सच है!"
"सच, एकदम: वैसे जब आएवं मालिक ने ही नहीं बताया तो मुझे भी नहीं बताना चाहिए था। परन्तु समय आने पर सम्पूर्ण पोसल साम्राज्य को एक परिवार की तरह बनकर रहना होगा-इस बात को ध्यान में रखकर यह बात मैंने जापको बतायी हैं।" युवरानी ने कहा। __ "जैसा मालिक कहते हैं, हम तो अबला है, न राज्य को चला सकती हैं, न युद्ध ही कर सकती हैं। हमारे...''
“यहीं तो आप ग़लत कह रही हैं। हम राज्य-संचालन या संरक्षण के कार्य में अशक्त है, तो भी घर को बिगाड़ने तोड़ने, भेदभाव पैदा करने के लिए आवश्यक बुद्धिमत्ता तथा तज्ञ जीभ रखते हैं, यह बात आप न भूलें। स्त्री घर को बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती हैं। पोयसल राज्य को एक परिवार-सा बनाकर रखने के लिए हमें उसी के अनुरूप चरित्र-निर्माण करना होगा। जो स्त्री अपनी प्रतिष्ठा एवं स्वार्थ से प्रेरित होकर नौकर-चाकरों को हीन दृष्टि से देखेंगी और ऐसे कार्य में प्रवृत्त होगी, वह घरफोड़ ही तो कही जाएगी' जो स्वार्थी होती है, वह दूसरों के हित और गौरव की परवाह नहीं करतीं। प्रभु जब बीमार थे तब मैंने आपको एक बात बतायी थी। वह यह थी कि पोय्सल राज्य से एक व्यक्ति को देशनिकासे देना 15 या: 48 व्यक्ति भी स्वाय का शिकार था। उसी देश-निष्कासित व्यक्ति ने ही आज चालुक्य और पोसलों में विष का बीज बो दिया है- यह खबर मिली है। उस व्यक्ति का सम्पर्क हमारी राजधानी के एक उच्च पदाधिकारी के घराने से बताते हैं। अतः स्त्री होने पर भी वह अविवेक से किसी भी अनचाहे आघात का कारण बन सकती है। इसलिए हमारे राज्य के हित की और राजकुमारों के हित की दृष्टि से उच्च अधिकारी वर्ग के आप जैसों को सम्पर्क रखते समय बीसियों बार सोच-समझकर निर्णय लेना चाहिए। आपका उद्देश्य बुरा न होने पर भी आपके ऐसे सम्पर्क से स्वार्थी लोग नाजायज फायदा उठा जाते हैं। उस व्यक्ति के देश-निष्कासन के बारे में आपके मालिक ने आपको बताया है या नहीं, मालूम नहीं।"
"बतलाया है।"
तो मुझे इस विषय में ज्यादा कहने की जरूरत नहीं। सभी प्रसंग आप जानती ही हैं। आप ही कहिए दण्दनाचिका जी, हमने उस वामाचारी का क्या नुकसान किया था। प्रभु ने ही कौन-सा अन्याय किया था? उसने उनको प्राणाघात पहुँचाने के लिए मन्त्र-तन्त्र किया, सुनते हैं। देश-निकाले के दण्ड का बदला लेने के ख़याल से उसने अपने इस मन्त्र-तन्त्र के प्रभाव को बढ़ाया। जिसके फलस्वरूप
126 :: पट्टमहादेवा शान्तला : भाग दो