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"मन्निधान का स्वास्थ्य इस योग्य नहीं कि जब जहाँ चाहें वहाँ चल-फिर सकें। पहले जैसा स्वास्थ्य रहा होता तो किसी भी तरह का निर्णय कर सकते थे। अप्पाजी की उम्र इस लायक होने पर भी अभी अनुभव की कमी है। उसे राज्य संचालन सन्त्र जब नक परी तरह हस्तगत न हो जाए तब तक किसी को भी छेड़ना शायद ठीक नहीं होगा, मेरी अल्पमति में कुछ ऐसा ही आता है। प्रभु के जीवित रहते हरा भी, उनकी शारीरिक शक्ति का ह्रास हुआ जानकर, उन्हीं से उपकृत होकर उनसे ही प्राणरक्षा प्राप्त करनेवाले खुद चालुक्य चक्रवर्ती ही जब क्रूर बन सकते हैं तो सावधानी से काम लेना होगा। इसी भावना से यह निवेदन कर रही हूँ। फ़िलहाल हमें ऐसा आचरण करना होगा कि इस स्थान परिवर्तन से हमें कुर फायदा नहीं हुआ हैं। अगर किसी दुरुद्देश्य से किसी ने वह सब किया होगा तो हमारे इस तरह के आचरण से उसे बल मिलेगा और बह और भी किसी कुतन्त्र में प्रवृत्त होगा। सावधान रहकर तय हम उसे पकड़ सकते हैं-यही ठीक होगा। सारी दात तव बड़े-छोटे दोनों अप्पाजी को भी मालूम पड़ जाएगी। तब अधिकार सूत्र अपने हाथ में लेने के लिए वे प्रयत्नशील होंगे, और तब तक उन्हें पर्याप्त समय भी मिल जाएगा। एक बार राज्य-संचालन की पूरी योग्यता उनमें आ जाए तभी स्वतन्त्र रूप से कुछ करने योग्य वे बन सकेंगे। यदि सन्निधान मेरी इस सलाह को उचित समझें तो ऐसा करें।" एचलदेवी ने निवेदन किया।
___ "अभी हम कुछ नहीं कहेंगे । अप्पाजी और छोटे अप्पाजी दोनों को बुलवाकर विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई निर्णय लेना उचित होगा। वैसे बुवरानी ने बड़ी अच्छी बात कही है, सूझबूझ-भरी।" महाराज ने कहा।
"राजकुमारों से विचार-विमर्श न ही करें तो शायद अच्छा होगा।" "क्यों"
"अप्पाजी के मन में हेग्गड़े मारसिंगय्या जी के बारे में कैसी धारणा है, यह मालूम नहीं। एक समय उनके लिए अप्पाजी के मन में तिरस्कार का भाव रहा है। उसके विचार करने का ढंग कुछ दूसरी ही दिशा में चला गया था। इसलिए इस विषय में उससे नहीं कहें तो ही ठीक होगा।"
"हाँ, हाँ, हमारा ध्यान उस तरफ़ नहीं गया था। बढ़ती हुई उम्र के साथ विचार करने की शक्ति भी घटती जाती है। हमें सारा वृत्तान्त मालूम है। एक बार क्यों, अनेक बार दण्डनायक मरिचाने को उसकी पूर्व-स्थिति हस्ती-हैसियत की याद भी दिलायी है। अप्पाजी का मन पद्मला पर है, यह भी मालूम है।"
"पहले प्रवल आसक्ति थी, परन्तु आजकल क्या स्थिति है इसका मुझे पता नहीं, इस सम्बन्ध में मैं कह भी नहीं सकती। हाँ. एक दिन, जब प्रभु जीवित थे, उन्होंने अप्पाजी को भी साथ रखकर प्रधानजी से विचार-विमर्श किया था। इसके
1211 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो