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से मिलने की आशा लगाये बैठी थी। इस खयर से वह भी निराश हो गयी थी। . हेग्गड़ती भाचिकब्बे भी यह समाचार सुनकर बहुत परेशान हुई। उसने सोचा कि पिरिवरसी जी जरूर आना चाहती होंगी परन्तु चक्रवती के अस्वास्थ्य के कारण नहीं आ पाएंगी। बेचारी बहुत चिन्तित होंगी। 'मगवान से प्रार्थना है कि चक्रवती शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएँ।। __ पट्टाभिषेक महोत्सव में आये अतिथियों का सिवा इस उत्सव के किसी दूसरी बात पर ध्यान ही नहीं था। इन्द्र की अमरावती की तरह सजी-सजाई राजधानी को देखकर मुग्ध ग्रामीण इस पट्टाभिषेक महोत्सन को और अपने नये महाराज और युवराज को हौदे पर बैठे देखने के लिए बहुत उत्साह से प्रतीक्षा कर रहे थे । घर-घर की मंजिल-मंजिल पर पोयसलों की व्याघ्र पताका को फहरत देखकर वे उमंग भरे उत्साह से पुलकित हो रहे थे। मुनि के आदेश के अनुसार भयंकर व्याघ्र को मार गिरानेवाले महानभाव वीरसल का बंश था यह। यह पताका उसी का प्रतीक थी। इस झण्डे के नीचे केसे भी डरपोक निडर हो जाते थे। इन पताकाजी को आसमान में फहरते देखकर सब लोगों में वीरावेश आ गया था। राजधानी में उत्साह छलक रहा था।
क्रमानुसार भन्नपूत पवित्र जलकुम्भ स्थापित किये गये, पंच गुस्ओं का सम्मान समारम्भ यथाविधि सम्पन्न हुआ। इन सब कार्यो की समाप्ति पर महानवमी के दिन महाराज ने अपने प्रिय अश्व की पूजा की और उस पर सवार होकर राजमहल के अहाते में स्थित जिन-मन्दिर तथा शिव मन्दिरों की तीन बार परिक्रमा की। दूसरे दिन आरोहित सिंहासन किरीट, करवाल आदि सबकी पूजा करके पंच कलश लानेवाली पांचों सुमंगलियों को मंगल द्रव्य समेत धस्न आदि देने के साथ भोजन कराया गया। ___अश्व की पूजा राजमहल के सामने के अहाते में व्यवस्थित की गयी थी। उसी अहाते में निर्मित शामियाने के एक भाग पर कुछ ऊँचा स्थान बना था जहाँ महाराज विनयादित्य के बैठने के लिए भद्रासन स्थापित था। महाराज अपनी विरूदालियों के साथ वहाँ उपस्थित हुए। बन्दी-मागधों ने विरुदावलियों की घोषणा की। राजकुमार बिट्टिदेव और उदयादित्य महाराज के दोनों तरफ़ आकर बैठे। प्रभु एरेबंग एचलदेवी के साथ राजमहल के अन्दर से आये। उनकी बग़ल में राजकुमार बल्लाल भी था। सालंकार भूषित उन दम्पतियों को देखकर उपस्थित जन-समुदाय ने हर्षोल्लास किया। दम्पतियों ने झुककर सबको अभिवादन किया । लोगों ने साक्षातू लक्ष्मी-नारायण ही समझकर उन्हें प्रणाम किया।
जन-समूह एक साध कह उठा, “पोसल साम्राज्य चिराय हो! विनयादित्य महाराज की जय! एरेयंग प्रभु की जय! राजकुमार बल्लाल देव की जय!'' यह
104 :: पट्टमहादेवी शान्तता : भाग दो