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बाहर निकल आये। जहाँ उनका साला हेगड़े सिंगिमय्या प्रतीक्षा कर रहा था। उन्हें भी साथ लेकर मन्त्रणालय की ओर चल दिये।
रेबिमय्या कमरे में ही रहा। प्रभु ने उससे कहा, "देखो रेबिमय्या, अपना मुँह बन्द रखना। कोई अगर पूछे कि चक्रवर्ती क्यों नहीं आये तो कहना- "वहाँ से समाचार मिला है। उनका स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण वे आ नहीं सके। उन्होंने आशीर्वाद भेजा है। हेग्गड़े मासिंगय्या से भी कह दो, वक्त मिलने पर वे प्रधानजी
और महादण्डनायक से यहीं समाचार कहें।" उसने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिता तो दिया, मगर अन्दर-ही-अन्दर बहुत व्यथित हुआ। मन-ही-मन कहने लगा, "बड़ों के छोटेपन का इससे बढ़कर कौन-सा उदाहरण मिलेगा: बहुत छोटी-सी बात को बड़ा बनाकर उनके लिए प्राण देनेवाले हमारे प्रभु का यों अपमान करें: हमारे प्रभु की निःस्वार्थ सहायता का यही प्रतिदान दिया है? ईश्वर कभी क्षमा नहीं करेंगे। बलिपूर प्रान्त को आज छीन लेंगे तो उससे दस गुना खोने के लिए यह अंकुरारोपण होगा। उन्होंने जिस नीयत का बीज बोया यह उनके लिए ही काँटा बनेगा, इसमें कोई शक नहीं।" यो सोचते-सोचते रेविपय्या का मन चालुक्य चक्रवर्ती के प्रति गुस्से से भर आया था। समय पाकर रेविमय्या ने मारसिंमय्या को प्रभु की आज्ञा सुना दी। उन्होंने प्रधानजी और दण्डनायक जी को यह खबर पहुंचा दी। महाराज को स्वयं प्रभु एरेयंग ने यही ख़बर दी।
उसी रात को महादण्डनायक के घर में बात उठी। सभी आगन्तुकों के आने पर जब चालुक्य चक्रवर्ती और पिरियरसी नहीं आएँगे तो बात उठे बिना कैसे रहेगी? चामब्बे दण्डनायिका ने अबकी बार पिरियरसी जी का मन सेवा-सत्कार द्वारा जीत लेने की सोच रखी थी। स्वाभाविक था कि उनके नहीं आने से अब सबसे ज़्यादा बही परेशान थी। सो उसी ने बात शुरू की। महादण्डनायक ने बात बता दी। तुरन्त चामब्बे बोली, "उन्हें दोरसमुद्र की आबोहवा ठीक नहीं लगी होगी। उस समय भी स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण पिरियरसी जी को बुलया लिया था। अब की बार भी यही हुआ। इस भगवान की भी आँखें बन्द हैं।"
"तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं हुई तो भगवान को बुरा-भला क्यों कहती हो? जो होना है वह तो होगा ही। उनके न आने से यहाँ का कोई काम नहीं रुकेगा। समझीं।" कहकर दण्डनायक ने बात यहीं खत्म कर दी।
इस खबर से सबसे अधिक निराशा किसी को हुई तो शान्तला और दासब्बे को। रेबिमय्या से उनके आने के बारे में बराबर पूछते रहने के कारण शान्तला का मन निराश होना स्वाभाविक ही था। इस शुभ अवसर पर पिरियरसी के दर्शन होने की महान आशा जव निराशा में बदल गयी तो वह बहुत अनमनी-सी हो गयी। पिरियरसी जी के साथ गालव्ये आएगी ही। दासब्बे अपनी बहिन गालव्ये
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: १५