________________
अपने वंशोद्धार के लिए एक पुत्र तक को नहीं जना। क्या मैं दो पुत्रों की माँ उससे घटिया हूँ?' एचियक्का के मन में इस तरह के विचार उट रहे थे। परन्तु उसे क्षण-भर के लिए भी यह नहीं सूझा कि सधःप्रसूता होने के कारण इन शास्त्रीय विधि-विधानों का पालन उससे नहीं हो सकता। इस तरह की बात एरेवंग प्रभु की बेटी केळेचलदेवी भी सोच सकती थी। सुमंगली पुत्री से श्रेष्ठ सुमंगली दूसरी कौन हो सकती है? वास्तव में दुस्खी उसे होना चाहिए था। पाँचों में उसे शामिल नहीं किया गया था। फिर भी उसे ऐसा कुछ भी नहीं लगा। आखिर वह युवरानी एचलदेयी की पुत्री जो है। ___पाँचों गुरुओं को बुलाकर प्रतिदिन गुरुसेवा करने की व्यवस्था की गयी थी। प्रभु एरेयंग के गुरु अजितसेनाचार्य और एचलदेवी के गुरु गुणसेन पण्डित, मेघचन्द्र विध, माघनन्दि मुनिवर और शुभचन्द्र देव इन लो तुमया गया था। सारी तैयारियाँ होने लगी थीं। ____ पंचमी के दिन इन पाँच सुमंगलियों में से दो वृद्ध सुमंगलियाँ-नागलदेवी और चामब्बे दण्डनायिका-इन दोनों ने युवराज, युवरानी और राजकुमार को मंगल-स्नान के पहले भद्रासन पर बिठाकर तैल-स्पर्श का मंगलोपचार किया। उनकी आरती उतारी गयी। इसके बाद वह आरती राजमहल की ड्योढ़ी पर उतारी गयी। तदनन्तर उस थाल के जल को राजमहल की ड्योढ़ी पर छिड़कने के लिए गयी दण्डनायिका। जल छिड़कते समय वह पौड़ी से टकराकर गिरने ही वाली थी कि ड्योढ़ी का सहारा पाकर बच गयी। फिर भी आरती की थाल का वासन्ती जल उसकी क़ीमती जरीदार रेशमी साड़ी पर गिर ही गया। बचा-खुचा जल वह पौड़ी पर वहीं से छिड़ककर लौट आयी। वहां से भद्रासन से लये बारहदरी की ओर न जाकर सीधे पूजा-घर में चली गयी। वहीं थाल रख दिया। फिर साड़ी बदलने के लिए उस कमरे में चली गयी जहाँ उन लोगों ने अपना सामान व बक्से रखे थे। स्त्रियों के सारे पहनाये रखने की व्यवस्था उसी कोठरी में की गयी थी और गोंका उसकी रखवाली पर नियुक्त धा। दण्डनायिका की भीगी साड़ी देखकर वह पूछ बैठा, "क्या हो गया दण्डनायिका जी, स्नानघर में फिसल गयीं क्या कहीं चोट तो नहीं आयी?" ___ "कुछ नहीं" कहकर वह अन्दर चली गयी और किवाड़ बन्द कर लिये। वह जहाँ खड़ी हुई थी, वहाँ दो-चार खून की बूंदों के धब्बे गोंका को दिखाई दे गये। दण्डनायिका साड़ी बदलकर जब आयी तो उसने कहा, "पैर में चोट लगी होगी, खून बह रहा होगा। शायद आपने ध्यान नहीं दिया होगा!"
"कुछ नहीं कुछ नहीं," कहती हुई वह बारहदरी की ओर बढ़ गयी। इस बीच युवराज बगैरह स्नान करने चले गये थे।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 101