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सम्मिलित कराया। जव शान्तला को यह बात मालूम हुई तो उसने इस आतप . पद्धति के नृत्य से स्पष्ट इनकार कर दिया। उसने कहा-"मुझे इस पद्धति की रीति-नीति का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है। ऐसी हालत में प्रतिष्ठित सभासदों के सामने उसे प्रदर्शित कर मैं उस कला का अपमान नहीं कर सकती।' इस वजह से यह बात जहाँ की सहीं रह गयी। फिर भी महापात्र यह सोच रहे थे कि किसी तरह से अधिकारी स्तर के लोगों से कहलवाने पर कार्य हो जाएगा। परन्तु उन लोगों से करें कसे: गन्होंने सोचा कि दण्डनायिका से इस काम में मदद लें। दण्टनायिका ऊपर से आत्मीयता दिखानेवाली हैं। यह अनुभवी महापात्र अच्छी तरह समझते थे। यह भी वह जानते थे कि वह हेगड़े परिवार से अन्दर-ही-अन्दर जलती है। इंगट नायिका की इसी इंा की आड़ में उन्होंने अन्तिम क्षणों में शान्तला पर दबाव डालने की कोशिश करनी चाही। बार-बार उनके मन में एक ही बात उठती, इससे अपने देश की इस कला के लिए यहाँ प्रोत्साहन मिल जाएगा
और सान्तला की प्रतिभा का परिचय भी हो जाएगा, वह विख्यात हो जाएगी। तक्ष्य उत्तम है। और ललम लक्ष्य की सिद्धि के लिए कुछ इधर-उधर भी किया जाए तो अनुचित नहीं।
जैसे-जैसे पट्टाभिषेक समारम्भ निकट आता गया, दोरसमुद्र में सर्वत्र आनन्द-हा-दानन्द हिलोरें लेने लगा। सुदी पंचमी के दिन भावी महाराज और युवराज के मंगल स्नान की पूर्व वेला में तूर्यनाद चारों जोर प्रतिध्वनित होने लगे। महाभारत के समय से ही चला आ रहा यह विजयोत्सव इस बार विशेष महत्त्वपूर्ण था। महाभारत का विजयोत्सव कन्नद राज्य में ही तो आरम्भ हुआ था।
गौ-संरक्षण हेतु युद्ध में अर्जुन ने इसी कन्नड़ राज्य में विजय पायी थी। उसी के स्मृति स्वरूप यह विजयोत्सव सम्पन्न होता रहा है। गौ-रक्षा धर्म-रक्षा का प्रतीक है। इस धर्म-रक्षा के कार्य में पोसलों की अपार आस्था के कारण इस उत्सव में उनकी श्रद्धा स्वाभाविक ही थी।
पमाभिषेक के पाँचों दिन पाँच पावन नदियों के जल से भरे कुम्भों द्वारा पूजा का विधान था। प्रतिदिन एक-एक कम्भ की पूजा शास्त्र विधि के अनुसार करने का निर्णय पुरोहित वर्ग ने किया था। प्रथम दिन पाँच-सुमंगलियाँ पाँच जलपूर्ण कलशों को पवित्र थाली में रखकर, सिंहासन की तीन बार परिक्रमा कर उसे प्रोहितों को सौंपेंगी। यह काम गंगराज की दोनों पत्नियों लक्कलदेवी और नागलदेवी, दण्डनायिका चामब्बे, चन्दलदेवी और हेग्गड़ती माचिकब्जे-इन 'सुमंगलियों को सौंपा गया था। 'उन पाँच सुमंगलियों में डाकरस की पत्नी या दण्डनायक की बहूँ एचिथक्का की हेग्गड़ती के बदले चुना होता तो इनका क्या बिगड़ जाता ?-चों मुझ जैसी बहू को छोड़कर उस हेग्गड़ती को चुना है, जिसने
TUI) :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो