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ऐसा नहीं लग रहा था कि उसका मन उदास है। परन्तु उस दिन, अपने जन्मदिन पर बुलवाकर यों उदासीनता का व्यवहार उसके लिए मानसिक पीड़ा दे गया। ठीक है, कुष्ठ विशेष राजकार्य के कारण महासन्निधान से मिलने जाने की बात बिट्टिदेय ने कही थी। हो भी सकता है। परन्तु राजमहल से लौटने पर माता-पिता ने भी राजमहल के किसी प्रसंग पर चर्चा तक नहीं की। ऐसा क्यों? कुछ खास बातें शायद हुई होंगी। राजमहल जाते समय जो उत्साह था वहाँ से लौटते वक्त उनमें वैसा कुछ नहीं दिखाई दिया। आखिर क्यों? यहाँ ऐसी क्या बातचीत हुई ? शायद मेरे ही बारे में कुछ बातों का निराकरण हुआ है। न, भगमन ऐसा न हो। जब राजकुमार का ही व्यवहार इस तरह उदसीन-सा रहा, तो हो सकता है, कुछ अनहोनी हुई हो। तब फिर मेरा क्या होगा? उसकी आँखें भर आयीं। दुःख दूना हो गया। वह बिस्तर पर औंधी पड़कर सिसकने लगी।
दण्डनायिका चामब्ये ने चामला से जान लिया कि राजमहल में बच्चे क्या करते रहे। उसे यह भी मालूम हो गया कि बेटी की इस हालत का कारण राजकुमार बल्लाल का उसके प्रति अनपेक्षित व्यवहार है। उसे समझा-बुझाकर साम्वना देने के इरादे से चामब्बे पद्मला के कमरे में गयी। उसे लेटी देख वह उसके बगल में जा बैठी। उसे उठाकर बैठापा । बोली- "पगली, तुझे क्या हुआ? राजकुमार ने बात नहीं की तो तुझे भूखा रहना चाहिए? कितने दिन ऐसे रहोगी? भूखी रहकर अगर कृश हो गयी तो क्या राजकुमार तुमसे ब्याह करेंगे? पगली कहीं की! कष्ट राजकार्य रहा होगा, जल्दी में गये थे। छोटे राजकुमार के कहने पर भी तुम कुछ उल्टा-सीधा सोचोगी तो कैसे बनेगा पद्मला ! उठ, चल, भोजन कर ले।"
“राजमहल से लौटने पर आप लोग भी तो प्रसन्न नहीं दिखे। मेरा भी अपमान हुआ ऐसी हालत में और क्या होगा?"
“युवराज को बीमार हालत देखकर हममें भी कौन-सा उत्साह हो सकता है। तुप ही कहो बेटी? हमने राजकुमार के लिए जो भेंट दी उसे युवरानी ने स्वीकार ही नहीं किया बल्कि कहा भी, 'दण्डनायिका जी, आपकी आत्मीयता राजपरिवार के साथ खुले दिल की होनी चाहिए।' इसलिए तुम एक छोटी बात को बड़ी बनाकर किसी भय की आशंका करके क्यों दुःखी होती हो? उठो।" कहकर बेटी को हाथ पकड़कर उठाया।
''माँ, युवरानी जी ने मेरे बारे में कुछ पूछा?" __ "सभी बच्चों के बारे में पूछा । तुम लोगों की पढ़ाई, संगीत, नाट्य आदि सब
कुछ...।'
"क्या हमारे राजमहल में होने की बात युवरानी जी को मालूम नहीं थी, माँ:" "मालूम तो थी, मगर तुमसे बात करने के लिए ऐसी कौन-सी जरूरत थी?
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 71