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घ झोंपड़े लगाये गये थे।
इस तरह पट्टाभिषेक महोत्सव के लिए सभी और से आनेवाले लोगों के लिए किसी तरह की तकलीफ न हो-ऐसी व्यवस्था सुचारु रूप से की गयी थी, सभी के लिए सब तरह की सहूलियत मिले-ऐसा सारा इन्तज़ाम किया गया था। यह सारी व्यवस्था प्रधान गंगराज एवं मरिमाने दण्डनायक-इन्हीं दो के संगठन के बल पर हुई थी। व्यवस्था सम्बन्धी प्रगति का विवरण उसी समय महाराज तथा युवराज को पहुँचाया जाता था। इस व्यवस्था की रीति से महाराज विनयादित्य बहुत सन्तुष्ट थे। खासकर प्रधानजी और महादण्डनायक की लगन और श्रद्धा को देखकर उनके बारे में पहले जो एक तरह की अमन्तोष भावना थी, वह सब जाती रही। इस तैयारी के दौरान ही महाराज विनयादित्य ने कुमार बल्लालदेव को अपने पास बुलाकर यह समझाते हए कहा कि जिस तरह बुबगज एरेयंग नकी सहायता करते रहे उसी तरह बल्लाल को भी अपने पिता की करनी चाहिए। तुम्हारे पिता की कार्य-क्षमता से मैं बहुत प्रसन्न और सन्तुष्ट हूँ। अप्पाजी, तुझे उनके सद्गुणों की अपेक्षा अधिक सद्गुणी, अधिक दक्ष और कर्तव्यपरायण होना चाहिए। तुम्हारे पिता ने मात्र यश लाभ से कभी कोई कार्य नहीं किया। वह निष्काम भाव से कार्य करते हैं। सभी ऐसा नहीं कर पाते। हमारे इस साम्राज्य को तिगना से भी अधिक विस्तार तुम्हारे पिता के ही परिश्रम का फल है। उन्हीं की तरह तुम गण-ग्राहक बनकर रहना चाहिए। कभी मन में यह विचार धारण मत करना कि गुण से अधिकार बढ़ा है। गुण सर्वोपरि है। सद्गुणों को पहचानना और गुणवानों का आदर करना, यही हमारे इस वंश की रीति रही है। हमारी प्रवृत्ति गुण और निष्ठा पर आधारित कार्य करने की होनी चाहिए। यदि ऐसा न होता तो हमारे दण्डनायक कहीं एक साधारण लिपिकार बनकर ही पड़े रहते। गुण के कारण ही तुम्हारी दादी ने उन पर भाई का-सा वात्सल्य रखा था। परन्तु उनका कह वात्सल्य अपात्र पर नहीं था, यही हमारे लिए तृप्ति और सन्तोष का कारण है। उनका जीवनादर्श, कुछ छोटे-मोटे स्वार्थ छोड़ दें, तो अच्छा ही है।
वधन्ती और पट्टाभिषेक का समय निकट आता गया।
मनोरंजन का कार्यक्रम भी बना। कुश्ती, तलवार तथा धनुविधा, अश्वारोहण का प्रदर्शन, लोकनृत्य-गीत, पहाड़ी जनजातियों का सामूहिक नृत्य आदि की व्यवस्था बाहर-खुले मैंदान में राजमहल के सामने ही की गयी थी। महल के अन्दर केवल आमन्त्रित अतिथियों के लिए ही मनोरंजन आयोजित था। इसमें शान्तला का नृत्य-गान और दण्डनायक की बच्चियों के सम्मिलित नृत्य की भी व्यवस्था थी। पद्मला ने नाचने से स्पष्ट इनकार कर दिया और कहा कि बहिनें जब नृत्य करेंगी तो वह गीत गा देगी। राजकुमार के समक्ष वह नृत्य करेगी तो
पट्टमहादेयी शान्तला : भाग दो :: 7