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खाने-पीने आदि की व्यवस्था करने का उत्तरदायित्व महासन्धि-निग्राहक नामिदेव को सौंपा गया था। इसके लिए राजधानी के चारों ओर तम्बू गड़वाये जा रहे थे। पाकशालाएँ तैयार की जाने लगी थीं। डाकरस दण्डनाय के नेतृत्व में वृद्धजनों, बच्चों आदि की देखरेख के लिए एक रक्षक दल बनाया गया था। चिकित्सा सम्बन्धी जरूरतों के लिए पण्डित चारुकीर्ति के नेतृत्व में सौ वैद्यों का जत्था संटित किया गया था। प्रमुख अतिथियों की अगवानी के लिए एक स्वागत समिति माचण दण्डनाथ के नेतृत्व में बनायी गयी थी। स्वयं महाप्रधान गंगराज पट्टाभिषेक समारम्भ की व्यवस्था करेंगे और महादण्डनायक मरियाने जुलूस की व्यवस्था और देखभाल करेंगे। मनोरंजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी कवि नागचन्द्र के नेतृत्व में संगठित एक समिति को सौंपी गयी थी। इस समिति में राजमहल के, महादण्डनायक निवास के और हेगड़े परिवार के गुरु, बैजरस, रावत, मायण आदि शामिल थे। चिण्णम दण्डनाथ एवं मारसिंगच्या को राजमहल की आन्तरिक कार्य-व्यवस्था का जिम्मा दिया गया था। चालुक्य सम्राट तथा पिरियरसी आदि को बलिपुर में ही स्वागत करके द्वारसमुद्र तक सुव्यवस्थित रूप से लिवा लाने का दायित्व सिंगिमय्या को सौंपा गया था। इस सारी व्यवस्था के साथ सबसे पहले बच्चों के दूध की व्यवस्था भी की गयी थी।
वों इस महान समारम्भ के अभूतपूर्व आयोजन के कारण राजधानी में उत्साहपूर्ण चहल-पहल थी। राजधानी में आनेवाली गाड़ियों, बैलों और घोड़ों को नये ढंग से सजाया जा रहा था।
इन चाहनों, बैलों और घोड़ों को उनके मालिकों ने खूब सजाया था। इस समारम्भ के अवसर पर लाखों की तादाद में लोगों के एकत्रित होने की सम्भावना तो थी ही, इसलिए बड़े-बड़े व्यापारियों ने राज्य के नाना भागों से आकर एक अस्थायी बाजार ही लगा दिया था। कपड़े, जेवरात, वस्त्र-वासन, खिलौने आदि की दुकानें ज़्यादा लगी थीं। रसद और खाने-पीने की चीजों की दुकानों को लगाने की मनाही थी। इस उत्सव में सम्मिलित होने के लिए आनेवाले सभी लोगों के लिए मुफ़्त में रहने और खाने-पीने आदि की व्यवस्था की गयी थी। इस वजह से ऐसी दुकानों को लगाने की अनुमति नहीं दी गयी थी। इस अवसर पर राजधानी आनेवाले सभी लोगों को राजमहल का ही अतिथि मानने का निर्णय किया गया धा।
इस अवसर पर दोरसमुद्र पहुँचनेवाले घोड़े-बैलों के ठहराने, घास-कुल्थी आदि की व्यवस्था के लिए राजधानी के दक्षिण-पूर्व के कोने में स्थित उद्यान में व्यवस्था की गयी थी। गाड़ीवालों के ठहरने के लिए उस उद्यान के चारों और छोटे-छोटे तम्बू
14 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो