________________
निर्देश आपको मिल जाएंगे।"
"निवास को व्यवस्थित करने के लिए तो स्त्रिचौं हैं, नौकर-चाकर हैं। फिर सदा घुड़सवारी करनेवाले हम जैसों के लिए यात्रा की थकावट की बात ही कहाँ उठती है? जैसे बलिपुर में रात को विश्राम करते थे उसी तरह विश्राम लेकर ही हमने वह यात्रा की है। इसलिए कल से ही..." ___"आपका कहना ठीक है फिर भी आप फ़िलहाल अपने निवास की व्यवस्था आदि की तरफ़ ही ध्यान दें। बाद में हम कहला भेजेंगे।" __ "जैसी आपकी आज्ञा".-कहकर हेगड़े मारसिंगय्या ने खड़े होकर सिर नवाया। युवराज ने घण्टी बजायी।
हेगड़े के इतनी जल्दी राजमहल से लौट आने पर हेग्गड़ती को बड़ा आश्चर्य हुआ। घर में कदम रखते ही हेग्गड़ती ने पूछा-'युवराज का स्वास्थ्य कैसा है?"
__"सुना हैं कि अमावस्या को उनकी हालत बहुत बिगड़ गयी थी। लेकिन अब स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हो रहा है।"
'युवरानी और राजकुमारों से भी मिल आय?"
"मिले तो नहीं लेकिन सना हैं कि सब कुशल हैं। हाँ, एक बात जरूर देखी। अब राजमहल में आने-जाने में पहले जैसी छूट नहीं। अब ग़जमहल में जाने के लिए अन्दर से आज्ञा लेनी पड़ती है और आने का कारण बताना पड़ता है।"-हंग्गड़े ने कहा। ___ "मैं अम्माजी के साथ युवरानी से मिलने जाऊँ तो कोई हतं तो नहीं"
"तुम्हारी इच्छा तो ठीक ही है लेकिन प्रभु ने पूछा नहीं कि तुप लोग राजमहल क्यों नहीं आयीं। मैं स्वयं तब तक नहीं जा सकता जब तक मुझे बुलाया नहीं जाता। वह दोरसमुद्र है, बलिपुर नहीं। यहाँ महाराज रहते हैं, प्रधानजी रहते हैं। महादण्डनायक जैसे अनेक बड़े अधिकारी रहते हैं। ऐसी हालत में राजमहल में जाना-आना इतना आसान नहीं। बलिपुर में इसी हैसियत के होने पर भी जैसे वहाँ रहे वैसे यहाँ नहीं रह सकते। हमारी हैसियत राजधानी में बहुत छोटी है। यहाँ सब-कुछ नया ही लगेगा लेकिन कुछ समय बाद इस नवीन वातावरण में मिल जाएँगे। प्रभु ने हमें बुलवाया है राजमहल के आन्तरिक कार्य के लिए। देखो, फिर भी हम, निवास ग़जमहल से कितनी दूर है!" ___ "दूर रहने से क्या होता है? आप चाहे जब घोड़े पर चढ़कर राजमहल पहुँच जाएँगे। आपको दूर लगने का कोई अर्थ ही नहीं। फिर पास रहने पर भी क्या हम सुबह-शाम राजमहल में जा-आ सकेंगे? ऐसा करना उचित होगा? एक तरह से हमारा दूर रहना ही अच्छा हैं। दूर रहने पर किसी को कुछ खटकेगा नहीं।" हेग्गड़ती ने कहा।
82 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो