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"वह नहीं होगा, मालिक। ऐसा हो ही नहीं सकता। इसीलिए तो मैंने कहा नहीं। आप भी सुनकर उस पर विश्वास नहीं कर सकेंगे। पुझे उसमें प्रभु दिखे। तुरन्त मेरे मन में आया कि वे हमारी आशा-आकांक्षाओं के काँटे बनेंगे तभी वह वामशक्ति कछ दूर पर दिखाई पड़ा। उसने मुंठ धाँधकर तीन बार फंक मारी और फिर हथेली पसार दी। तलवार हाथ में लिये प्रभु जहाँ खड़े थे वहीं गिर पड़े। हाय! हाय! मुझे इस दृश्य को देखना ही नहीं चाहिए था। मैं अन्धी हो जाती तो कितना अच्छा होता। मेरे दिमाग में इस अंजन की बात ही क्यों सूझी, भालूम नहीं। उस वन्त उसने जो कहा..." चामन्चे का गला रुध आया। हिचकी बंध गयी, वह सिसकने लग गयी, आंसू बह निकल।
अंजन में तुम्हें कोई कुछ कहता भी सुनाई पड़ा?" दण्डनायक ने पूछा । स्वयं पर संयम रातकर चामब्बे बोली, "वहाँ सुनाई देने जैसा कुछ होना नहीं, केवन दिखाई हीं देता है। उसी पर से बह सवाल पूछकर उसका अर्थ बतलाता है। वही अथ...आपको याद नहीं दण्डनायिका ने कहा।
''याद नहीं, क्या कहा था...?"
"वामशक्ति ने कहा था-'इससे होनेवाला भला-बुरा सब आपसे सन्धित है। जो उनमें दिखाई दिया, मेरा वह, रक्षागायन्त्र उसके विरुद्ध आपका संरक्षण करेगा। आपने स्पष्ट रूप से नहीं कहा, इसीलिए आपके मनोगत को भांपकर काम करने की आज्ञा हमने अपनी शक्ति को दे दी। उसने अपना काम कर दिया। यदि आप चाहेंगी नो और ज्यादा आपकी मदद करेंगे।' मैंने तभी कहा था- नहीं, हो सकता हो तो अपनी शक्ति को वापस ले लें।' हाय! हाय!... मालिक...क्या हुआ, करना चाहा कुछ, हुआ कुछ और, क्या से क्या हो गया ! अब क्या करना चाहिए: मेरे मन में भी कभी प्रभु, के अहित की बात नहीं आयी। जब आपने बेलापुरी जाकर अपनी पत्नी को स्वीकार करने की प्रार्थना प्रभु से की थी और तब प्रभु ने जो कहा था, 'अभी उसके बारे में कोई विचार ही नहीं तो कुछ खिन्नता मझे ज़रूर हुई थी। परन्त...कभी...मैंने प्रभु की बुगई नहीं बाही, मालिक। इस मात को आप प्रभु से निवेदन कैसे करेंगे' फिर ऐसा कहना ठीक भी होगा या नहीं, यह सोचकर ही मैंने आपसे इस बारे में कुछ नहीं कहा। अपने भीतर की इस पीड़ा को भगतने का निर्णय तव मैंने स्वयं कर लिया था। लेकिन अब कहने के अलावा कोई चारा ही नहीं रहा इसलिए कह दिया। आप जो चाहं, करें। मैंने तो उसी गत को उसके जाते ही न चारों यन्त्रों को निकालकर कूड़े में फेंक दिया धा।"
"फेंक दिया, अच्छा किया। कूड़े के बदले काँ में फेंक देती।"
H0 :: प.महादेवी शान्नला : भाग दो