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बात राजमहल तक पहुँची होती तो युवरानी जी कहे बिना न रहतीं, यही क्यों, खरी-खोटी भी सुनातीं।"
“मुझे भी यही आश्चर्य है कि युवरानी जी ने तुमसे यह यात क्यों नहीं छेड़ी!"
"तो क्या प्रभु की आपसे इस सम्बन्ध में कोई बात हुई ?'' "प्रभु ने यहीं-केवल यही बात की। तुम्हारे भाई ने सारी बातें कह दी हैं।" "उन्हें कहाँ से मालूम हुआ:" ।
“यह मैं नहीं जानता। प्रभु से भी कैसे पूछ सकता हूँ? प्रभु जय वह सारा हाल, जो हमारे घर में हुआ था, विस्तार से सुना रहे थे तब सिर्फ़ हाँ कहते हुए सिर झुकाकर बैठने के सिवा मेरे लिए और चारा ही क्या था? कुछ उत्तर देने का मौका ही नहीं मिला 1 मुझे तो जैसे काठ मार गया था। बात जो घटी उसे प्रभु हू-ब-हृ कह रहे थे। उन्हें किसने बताया होगा। इस तरह से? केवल हम ही चार लोग-मैं, तुम, वामशक्ति और चोंकी-ही तो जानते हैं इस बात को।" ।
"मैंने किसी से कहा नहीं, आपने भी नहीं कहा। बच्चों को भी इसकी गन्ध तक नहीं पहुँचने दी। तब तां जाहिर है, बाकी दोनों में से किसी एक ने कहा होगा। चोकी को बुलवाकर पूछा जाय।"
"अब उससे क्या होगा? उससं कुछ और कहलवाना तो सम्भव है नहीं।" "इस तरह पीठ पीछे छुरा घोंपनेवालों को सजा दी जानी चाहिए।"
"यदि खुट जाकर कहा हो तो वह द्रोह होगा। चोकी जाकर कहे, यह सम्भव नहीं। यह साधारण नौकर मात्र है। उसके लिए प्रभु तक वह नहीं पहुँच सकता।"
"तो क्या आप समझते हैं कि वामशक्ति ने ही जाकर कहा है।"
"हो सकता है। उसके बार-बार जोर देकर पूछने पर भी तुमने यह नहीं बताया कि अंजन में क्या देखा। इससे वह असमंजस में पड़ गया होगा।" । ____ “आपने कहा था-'कुछ नहीं दिख रहा है', यह भी तो उसके असमंजस का कारण हो सकता है?'
"जिसे देखा नहीं उसे मैं 'देखा कहूँ भी कैसे? उसे भी मालूम है कि कुछ लोगों को दिखता हैं, कुछ को नहीं। परन्तु जिसे दिखा वह भी अगर न कहे तो असमंजस नहीं होगा? वास्तव में तुमने उस बात को मुझे भी नहीं बताया।"
'मैंने कहा नहीं, इसके लिए असमंजस हो सकता है। परन्तु न जानने पर नुकसान ही क्या था?"
"नुकसान नहीं: सुन-समझकर मैं अपनी स्थिति स्पष्ट कर लेता हूँ। परन्तु तुमने तो उसके मनोभाव को समझा ही नहीं। वह तुम्हारी मदद करने आया था। तुम भी सहायता पाने की आशा से उसके पास गयी थी तो तुम्हें उस पर पूरा
78 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो