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नाट्याचार्य अलग पंक्ति में जा बैठे थे। नाश्ता करने के बीच कोई विशेष यातचीत नहीं हुई। केवल हेम्गड़ती और दण्डनायिका जी के बीच उपचारोक्ति 'घोड़ा और लीजिए' 'बस, और नहीं चाहिए' आदि चल रही थीं। नाट्याचार्य पूरे समय पौन रहे। हाँ, बच्चों की खुसर-फुसर बराबर चलती रही।
नाश्ता करने के बाद दोनों बेटियों नाट्याभ्यास के लिए निकलीं। चामला के अनुरोध पर पा से आज्ञा लेकर शान्तला भी वहाँ चली गयी। "ज्यादा देर मत लगाना, तुम्हारे पिताजी से पहले हमें घर पहुंचना है।'' माचिकब्बे ने शान्तला को सचेत किया। ___मेंट के इस अवसर पर नाश्ता कुछ अधिक ही हो गया। इसलिए बेटियों ने सोचा कि अब अभ्यास कुछ देर बाद ही आरम्भ किया जाए। फिर भी उन लोगों ने वह समय व्यर्थ नहीं गंवाया । आपस में अपने ज्ञान, कला, अध्ययन आदि की प्रगति के बारे में बातें करती रहीं।
"एक दिन तुम्हारा नृत्य देखना चाहिए, अम्माजी!" महापान ने कहा। "हम भी देखना चाहती हैं," लड़कियों ने भी जोर देकर कहा।
"उसके लिए इतना संकोच ? आप सब लोग एक दिन हमारे यहाँ पधारिए।' शान्तला ने कहा। ___ऐसा ही करेंगे। सुना है कि मुझसे मिलना चाहती थीं, अम्माजी?" शान्तला से महापात्र ने पूछा।
“विशेष कुछ नहीं। यहाँ मेरी आपसे भेंट हुई थी न! उसके बारे में मैंने अपने गुरुजी से कहा था। तो उन्होंने पूछा, 'क्या औत्तरेय पद्धति के अनुसार नृत्य सिखा रहे हैं?' मैं यह कुछ जानती नहीं थी। फिर भी मैंने कह दिया था कि भरतनाट्य सिखा रहे हैं। तो वे बोने– 'उन्हें औत्तरेय पद्धति का ज्ञान तो होगा ही?' इस
सम्बन्ध में मैं कुछ जानती ही नहीं थी। मैंने कहा, 'मैं नहीं जानती। तभी से यह जिज्ञासा बनी रही।" शान्तला ने कहा। ___"आपके गुरुजी का प्रश्न बिलकुल सहज है, बेटी। उत्कल के होने से मैंने उसी औत्तरेय पद्धति के नृत्य को सीखा था। फिर जीवन से कुछ ऊब जाने के कारण मैं दक्षिण की तरफ़ चला आया । यहाँ आने के बाद यहाँ की इस नाट्य पद्धति के अनुसार थोड़ा-बहुत ज्ञान अर्जित किया। वहीं आज मेरे गुजर-बसर का सहारा बन गया है। मेरे सिखाने में निश्चित ही शुद्ध दाक्षिणात्य पद्धति की कमी दिखती होगी। इसका कारण मूलतः औत्तरेय पद्धति का अभ्यास है। उस औत्तरेय पद्धति का नृत्य यहाँ कोई सीखना नहीं चाहेगा। यही समझकर मैंने दाक्षिणात्य पद्धति को अपनाया।"
"उसमें और हमारे भरतनाट्य में क्या अन्तर है?" शान्तला ने पूछा।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 91