________________
समस्या व्यक्तिगत बन जाती है।" कवि नागचन्द्र ने समझाया।
"मायण की वह रामकहानी क्या है? कौन है वह?"-बल्लाल ने जिज्ञासावश
"दण्डनायक जी की पुत्रियाँ आयी हैं। आपने देखा नहीं।" कहकर कवि नागचन्द्र ने उस ओर इंगित किया।
बल्लाल बों ही उस ओर एक बार देखने के बाद गुरुजी की और मुखातिब हो गया। वह समझ गया कि उस विषय पर अब आगे की यात नहीं होनी चाहिए।
कवि नागचन्द्र का ख्याल था कि बल्लात्त अब तक पद्मला को नहीं देख पाया है। लेकिन उसकी तरफ़ देखकर भी जब उसने कोई उत्साह नहीं दिखाया तो उन्हें आश्चर्य हुआ। मायण का किस्सा अब प्रासंगिक नहीं था। फिर भी कनि नागचन्द्र ने सोचा कि उसे न कहकर कुछ और कहे तो वे लड़कियाँ समझेंगी कि हमारी बजह से बात करना बन्द कर दिया है। इसलिए उन्होंने आज इतना ही कहकर अध्यापन समाप्त कर दिया। फिर बात बदलने के विचार से पद्मला की ओर देखकर पूछा, "दण्डनायक जी भी आये हैं?"
"हाँ, माँ भी आयी हैं।" पद्मला ने कहा। बात तो वह नागचन्द्र से कर रही थी, मगर दृष्टि अनजाने ही बल्लाल की ओर चली गयी थी।
'दण्डनायक जो सं मुझे मिलना था। अब यहां आये हुए हैं तो सोचता हूँ मिल न ।' करते हुए कवि नागचन्द्र उठ खड़े हुए। ___ शिष्य भी उठ खड़े हुए। उन्होंने गुरु को सविनय प्रणाम किया। कविजी चले गये। तब तक वल्लाल प्रतीक्षा कर रहा था। उसने बिट्टिदेव से कहा, "छोटे बप्पाजी, मुझे महासन्निधान के पास जाना है, तुम और उदय इनके साथ रहो।'
और इतना कहकर वह भी चला गया। पद्मला को पूरा विश्वास था कि बल्लाल जाते-जाते कम-से-कम एक बार उसकी ओर देखेगा तो जरूर। मगर उसने ऐसा भी नहीं किया। वह बेचारी बहुत निराश हुई। जिसे न करने का पाठ अभी-अभी गुरुजी से उसने पढ़ा था, वहीं करके चला गया।
चामला को बहुत आश्चर्य हुआ, बिट्टिदेव को भी। बल्लाल में एकाएक इतना परिवर्तन! यह ती जानी हुई बात थी कि इससे पद्मला को दुःख हुआ है इसलिए उसे खुश करने के लिए उन लोगों ने बातों-ही-बातों में एक निर्णय कर लिया।
"उदय, चलो हम सब मिलकर शतरंज खेलेंगे। भैया को महासन्निधान के पास राजकार्य रहा होगा, इसलिए वे वहाँ गये हैं। फिर आज जाने का मतलब है कोई बहुत जरूरी काम होगा।" बिट्टिदेव ने कहा।
"आज पर बड़ा जोर दिया आपने? क्या 'आज' के कोई सींग निकले है?"
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 69