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हो रही है । द्रौपदी और भीम की जोड़ी अनल-अनिल की जोड़ी जैसी है। रन्न कवि का नायक भीम है। काव्य का विषय है भीम द्वारा द्रौपदी की जिज्ञासाएँ शान्त कर उसे सन्तुष्ट करना, विपम श्रृंगार आदि और इनकी क्रियान्विति के लिए सन्नद्ध भीम के साहसपूर्ण व्यक्तित्व को निरूपित करना। इस अवसर पर कवि गन्न भीम की आन्तरिक वेदना भीग के ही शब्दों में इस तरह व्यक्त करते हैं -
''सभा में मैंने जो प्रतिज्ञा की थी वह पूर्ण होने से चूक गयी। पांचाली के मुख की वा म्लानता नहीं गयी।'' इस पद्यांश को कवि नागचन्द्र बहुत ही रसपूर्ण गति से पढ़कर अर्थ समझा रहे थे। "सम्पूर्ण काव्य रचना इसी केन्द्रबिन्दु को लेकर हुई है। ऐसा क्या कारण था कि पांचाल की राजपत्री का मुख प्लान हुआ
और केवल इसी बात पर रुक्षेत्र की रणभूमि पर्वत जैसे विशाल गज़ग़जों के रक्त से प्लावित हो गयी। इतने पर भी द्रौपदी का म्लानबदन म्लान ही बना हुआ है। उसके मुख पर मन्दहास उपजाना है। यह तभी सम्भव है जर भीम उस दिन राजसभा में की गयी प्रतिज्ञा पूरी करें। और वह तभी पूरी होगी जब भीम दुयोधन की बंधा तोड़ देंगे। इसीलिए वह दुर्योधन को खोज रहा है, परन्तु वह कहीं दिख नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में द्रौपदी की बदन-प्लानता दूर हो तो कैसे?" घोड़े शब्दों में सम्पूर्ण महाभारत की कथा कवि ने बहुत ही प्रभावशाली एवं मनोहर ढंग से कह दी है। साध-साध एक तत्त्व की बात भी कह दी है। "जो व्यक्ति स्त्रियों को ट्ख देते हैं, उन्हें पीड़ा पहुंचाते हैं, उनकी अप्रसन्न करते हैं-ऐसे ही व्यक्ति दुनिया में होनेवाले सारे विप्लवों का कारण बनते हैं। जो स्त्रियों के दुःख का निधारण कर उन्हें सुख-चैन देते हैं, उनकी कठिनाइयों का समाधान करते हैं. वे संसार में शान्ति स्थापित करने का कारण बनते हैं। अर्थात मानव का सुख मानिनियों को सुखी और तृप्त बनाये रखने में है। उन्हें अतृप्त रखकर, कष्ट पहुँचाकर, उनके सुख-सन्तोष को नष्ट करने से तो वह स्वयं अपने जीवन के लिए शूल बन जाता है। यह कवि का भाव है। काव्य के पढ़ने से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि हम जिसे प्रेम करते हैं उसे सदा सुखी रखना चाहिए। यह हमारी पाठ संस्कृति का लक्षण है। नारी को मात्र भोग्य वस्तु मानकर चलना हमारी संस्कृति को रीति नहीं। उससे प्राप्त होनेवाले सुख के लिए हमें उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए । इतना ही नहीं, निष्टावान रहकर सदा उनके सुख का कारण बनकर रहना चाहिए।" इतना कष्ट निरूपण करने के बाद कवि नागचन्द्र रुक गये। ___ "कत्रि के विचार प्रशंसनीय हैं, परन्तु नारी को इस तरह रखने के इच्छुक पुरुष के प्रति नागं का भी कुङ कर्तव्य होना चाहिए न, गुरुजी? वहाँ बलिपुर में आपने मायण के संकट की रामकहानी सुनी है न?" विट्टिदेव ने पूछा।
"अपवाद तो राहने ही हैं। अपवाद तत्त्वनिरूपण के जाधार नहीं बनते। वैसी
68 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दा