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शायद वे चाहती होंगी कि तुम लोग राजकुमारों के साथ रहो। इसीलिए तुम लोगों. को इस तरफ़ भेजकर हमें भीतर बुलवा लिया ।'
"तो आपका जलपान युवरानी जी के ही प्रकोष्ठ में हुआ?" "हाँ," चामब्बे का उत्तर था। "माँ, तुम कुछ भी कहो, युवरानी जी कुछ बदली-बदली लगती हैं।"
"इस वर्तमान परिस्थिति में उन्हें कुछ सूझता नहीं, बेटी। युवराज युद्ध में जख्मी होकर लौटे हैं। अभी तक घाब नहीं भग़। विस्तर से नहीं उठ पाते। यह देखकर वे भीतर-ही-भीतर बहुत दु:खी हैं, बेटी। उनके प्रत्येक व्यवहार के पीछे हमें इन सारी बातों का ध्यान रखना चाहिए। उनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। वे माता हैं, शान्तमूर्ति माता, धरती जैसी क्षमाशील । तुम लोगों को अपने प्रकोष्ठ में नहीं बुलाया, इसलिए तुमको ऐसा-वैसा नहीं सोचना चाहिए। मान लो कल तुम ही महारानी बन गयी तो सबसे सभी मौकों पर मिल सकोगी? सभी को अपने पास बुला सकोगी? तुम्हें उनकी हालत का पता नहीं, बेटी। वे वही पहले जैसी हमारी युवरानी हैं। उठी, आओ," कहकर चामध्ये आगे बढ़ गयी। ___ग की इन बातों ने उपमें पिर आधा की जीत जगा दी। कल के दिन तुम्हीं पाहारानी...' हाँ, इसीलिए तो माँ ने इस तरह मुझसे कहा है-पद्मला को यही लगने लगा। उस बेचारी को क्या मालूम कि माँ मन में कुछ रखती है, कहती कुछ और है। मन को ढाढस बँधाकर वह माँ के पीछे-पीछे भोजन के लिए चल पड़ी। बेटी ने भोजन कर लिया तो दण्टनायिका उसे शयनागार तक छोड़ स्वयं दण्डनायक जी के कमरे की ओर बढ़ गयी।
दण्डनायक पलंग पर तकिये का सहारा लेकर पैर पसारे चिन्तामग्न बैठे थे। दण्डनायका ने अन्दर प्रवेश करके किवाइ बन्द कर लिये। कुण्डी चढ़ाने की आवाज सुनकर टण्डनायक प्रकृतिस्थ हुए। पलंग पर ही कुछ सरककर उन्होंने दण्डनायिका को बैठने के लिए जगह दी। दण्टुनायिका बैठ गयी।
"क्या बातचीत की युवरानी ने?" सीधा सवाल किया दण्डनायक ने। युवराज और दण्डनायक जी के बीच जो बातचीत हुई थी उसी पृष्ठभूमि में शायद युवरानी से दण्डनायिका की बातचीत हुई होगी-यही सोच दण्डनायक कुछ-कुछ ऊहापोह में पड़ गये। युवराज से बातचीत करते हुए उन्हें कुछ पता नहीं चला था। इसलिए जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी दण्डनायिका से विषय जानने का कुतूहल हो रहा था। दण्डनायिका का भी कुछ-कुछ यही हाल था। इसलिए चापब्बे ने ही पूछा, 'युवराज ने आपसे क्या बातचीत की?"
"सवाल के लिए सवाल उत्तर नहीं होता । युवरानी जी से क्या बात हुई?" "न, पहले आप बताइए।"
72 :: पट्टपहादेवी शान्तला : भाग दो