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राज्य को जरूरत नहीं । अब ज़्यादा बातें मत बना, चल निकल यहां से।" वामशक्ति पण्डित यहाँ से अपने घर चला गया। उसके बाद वह कहीं गया, पता नहीं। कहीं किसी को दिखाई नहीं दिया।
प्रधान गंगराज ने वामशक्ति पण्डित को दुतकर जो ही की थी, उसका सारा वृत्तान्त प्रभु एरेयंग के समक्ष यथावत् निवेदन किया और बताया, “मेरी बाहन ने उस जंजन क्रिया में जो देखा वह मालूम नहीं पड़ा। उसने आगे देखने से इनकार कर दिया था, इसलिए यही समझना चाहिए कि उसने जो कुछ देखा वह दुखदाबी था । उसे भी बताने का आदेश हो तो जानकर बनाऊंगा।"
"अच्छा हुआ कि वामाचारी को देश से निकाल दिया। आपकी बहन को आदत के विपरीत कुछ और ही दिखा, इससे वह बहुत विह्वल हो गयीं, यह भी स्पष्ट हो गया। सारा वृत्तान्त हम तक पहुँच गया है, यह बात जान लेने पर वह अब तक जिस मिलनसारी से राजमहन में आती जाती रही हैं शायद उन्हें अब वैसा करने में संकोच हो ! सुनने में आया है कि अब वे ऐसे ही संकोच की स्थिति में रहा करती हैं। उन्होंने जो किया वह अविवेक था- इतना भर उन्हें मालूम हो जाय तो पर्याप्त है। बड़े लोगों को बड़ों की तरह बरतना चाहिए। छोटे लोगों के साथ मिलकर छोटे नहीं बनना चाहिए। यह उन्हें समझा दीजिए। यह उन्हें ख़बर न होने दें कि हमें यह सारा वृत्तान्त मालूम हो गया है।"
" जैसी आपकी आज्ञा । वास्तव में मैं टण्डनायक जी से या अपनी बहिन अथवा उनके यहाँ के नोकर-चाकरों से मिला ही नहीं उस पण्डित से असली बात निकलवाने के लिए मैंने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया मानों मैं सब कुछ जानता हूँ। पति को देश निकाले का दण्ड जो दिया गया है उसका आज्ञा-पत्र कल दण्डनायक जी के पास भेज दिया जाएगा। बाद में अन्यान्य दण्डनायकों के पास उन-उन सीमा क्षेत्रों के हंग्गड़ों के पास सूचना भेजने की व्यवस्था करने का आदेश कर दिया जाएगा। अगर कोई पूछेगा तो उनसे कहेंगे कि हमने ही उसकी गति विधियों का पता लगाकर, उसके वामाचारी व्यवहारों से सामाजिक जीवन कलुपित न हो, उसे निकाल दिया है।"
"ठीक है। हेगड़े मारसिंगय्या के लिए निवास के सम्बन्ध में क्या निर्णय किया है?"
" जैसी आज्ञा हुई थी, राजधानी के ईशान में निवास की व्यवस्था कर दी गयी
है ।
"वह ख़ुशी की बात है । कल सूर्यास्त के पहले वे शायद यहाँ आ पहुँचेंगे,
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 63