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होगा ।"
"चलो मान लिया। यदि उसने झूट कहा हो तो उसे दण्ड मिलना ही चाहिए न? दण्ड देने के लिए हमें पहले सच्चाई तो मालूम होनी ही चाहिए" पण्डित कुछ झुका । उसने सोचा था कि सुरक्षित रूप से प्रधान के हाथ से छूट जाएगा। अब उसे सूझ नहीं रहा था कि क्या करना चाहिए।
"चुप रहने से काम नहीं चलेगा। सवाल का जवाब तुरन्त मिलना चाहिए | बताओ, चोकी से तुमने क्या-क्या जानकारी एकत्र की? और यह सब किसलिए किया?"
"हमारा धन्धा चले, यहीं हमेशा हमारा लक्ष्य रहा है। उसके लिए अपेक्षित बातों का पता लगाना जरूरी होता है।"
"पहले यह बात तुमने क्यों नहीं बतायी ?"
" माफ़ कीजिए, कुछ घबरा गया था।"
गंगराज हँस पड़े, "अच्छा तो घबरा गये थे तुम ।" मेड़ी ऐ परीक्ष पहले कभी नहीं हुई"
"सच बोलनेवाले को किसी भी परीक्षा में घबराने की जरूरत ही क्या है! अगर तुम घबरा गये तो वह तो सचाई को छिपाने का ही प्रयत्न समझा जाएगा न” "छिपा रखने के लिए है ही क्या, प्रधानजी : मैंने चांकी से उन्हीं बातों का संग्रह किया जिन्हें आप जानते हैं। सो भी उतना ही जितना वह जानता है ।" "उससे तुमने जो जो बातें जानी हैं वह सब बतानी होंगी और सुनो, वह मत बको कि जो सब मैं जानता हूँ वह तुम भी जानते हो ।"
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"ऐसा कुछ नहीं प्रधानजी कोई नयी बात नहीं यही मेरे कहने का मतलब
है ।"
"विषय एक ही होता है, पर उसकी जानकारी एकत्र करने का उद्देश्य अलग-अलग होता है। इसलिए तुम्हें इससे कोई मतलब नहीं। बताओ ।"
"दण्डनायिका जी की यह अभिलाषा है कि बड़े राजकुमार से उनकी बेटी का विवाह हो । परन्तु युवरानी जी किसी दूसरी लड़की के साथ विवाह की बात सोच रही हैं। उस दूसरी कन्या के माता-पिता दण्डनायिका जी के प्रयास में बाधा डाल रहे हैं और उन लोगों ने युवरानी जी को वश में कर रखा है। इस वशीकरण से युवरानी को मुक्त करने पर दण्डनाधिका जी की आशा पूरी होने के लिए मार्ग सुगम हो जाएगा इतना ही मालूम हुआ ।" और पण्डित चुप हो गया ।
"यह बात तुम्हें चोकी ने बतायी या दण्डनायिका जी ने?"
"मैंने ही चोकी से यह सब पता लगाया था । दण्डनायिका जी ने कभी इस सम्बन्ध में नहीं कहा।"
60 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो