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चतुःसप्ततितमं पर्व
तेनैव विधिनाऽन्येऽपि विद्याधरजनाधिपाः । सहर्षाः प्रस्थिता ये क्रुद्धा लश्वरं प्रति ॥२६॥ तं प्रति प्रसृता वीराः क्षुब्धाम्भोधिसमाकृतिम् । संघट्ट परम प्रापुगंगातुङ्गोर्मिसन्निभाः ॥३०॥ ततः सितयशोव्याप्तभुवनौ परमाकृती । स्ववासतो विनिष्क्रान्तौ युद्धार्थों रामलक्ष्मणौ ॥३१॥ रथे सिंहयुते चारौ सम्बद्धकवचो बली । नवोदित इवादित्यः पद्मनाभो व्यराजत ॥३२॥ गारुडं रथमारूढो वैनतेयमहाध्वजः । समुन्नताम्बुदच्छायश्छायाश्यामलिताम्बरः ॥३३॥ मुकुटी कुण्डली धन्वी कवची सायकी कुणी। सन्ध्यांसक्तानागाभः सुमित्राजो व्यराजत ॥३४॥ महाविद्याधराश्चान्ये भालङ्कारपुरासुराः । योर्बु श्रेणिक निर्याता नानायानविमानगाः ॥३५॥ गमने शकुनास्तेषां कृतकोमलनिस्वनाः । आनन्दयन् यथापूर्वमिष्टदेशनिवेशिनः ॥३६॥ तेषामभिमुखः क्रुद्धो महाबलसमन्वितः । प्रययौ रावणो वेगी महादावसमाकृतिः ॥३७॥ गन्धर्वाप्सरसस्तेषां बलद्वितयवर्तिनाम् । नभःस्थिता नृवीराणां पुष्पाणि मुमुचुर्मुहुः ॥३८॥ पादातैः परितो गुप्ता निपुणाधोरणेरिताः । अञ्जनाद्रिसमाकाराः प्रसस्त्रमत्तदन्तिनः ।।३।। दिवाकररथाकारा रथाः प्रचलवाजिनः । युक्ताः सारथिभिः सान्द्रनादाः परमरंहसः ॥४०॥ पवल्गुः परमं हृष्टाः समुल्लासितहतयः । पदातयो रणक्षोण्यां सगर्वा बद्धमण्डलाः ॥४१॥
से जुते तथा गम्भीर और उदार शब्द करनेवाले रथ पर सवार हुआ विद्याधरोंका राजा भूतस्वन अलग ही सुशोभित हो रहा था ।।२८।। इसी विधिसे दूसरे विद्याधर राजाओंने भी हर्षके साथ क्रुद्ध हो युद्ध करनेके लिए लङ्केश्वरके प्रति प्रस्थान किया ।।२६।। क्षुभित समुद्रके समान आकृति को धारण करनेवाले रावणके प्रति बड़े वेगसे दौड़ते हुए योद्धा, गङ्गानदीकी बड़ी ऊँची तरङ्गोंकी भाँति अत्यधिक धकाधूमीको प्राप्त हो रहे थे ॥३०॥
___ तदनन्दर जिन्होंने धवल यशसे संसारको व्याप्त कर रक्खा था तथा जो उत्तम आकृति को धारण करनेवाले थे ऐसे राम लक्ष्मण युद्धके लिए अपने निवास स्थानसे बाहर निकले ।।३१।। जो गरुड़के रथपर आरूढ़ थे, जिनकी ध्वजामें गरुड़का चिह्न था, जिनके शरीरकी कान्ति उन्नत मेषके समान थी, जिन्होंने अपनी कान्तिसे आकाशको श्याम कर दिया था, जो मुकुट, कुण्डल, धनुष, कवच, बाण और तरकससे युक्त थे, तथा जो सन्ध्याकी लालीसे युक्त अञ्जनगिरिके समान आभाके धारक थे ऐसे लक्ष्मण अत्यधिक सुशोभित हो रहे थे ॥३२-३४|| गौतम स्वामी कहते हैं कि हे श्रेणिक ! कान्तिरूपी अलंकारोंसे सुशोभित तथा नाना प्रकारके यान और विमानोंसे गमन करनेवाले अनेक बड़े-बड़े विद्याधर भी युद्ध करनेके लिए निकले ॥३५॥ जब राम लक्ष्मणका गमन हुआ तब पहलेको भाँति इष्ट स्थानोंपर बैठकर कोमल शब्द करनेवाले पक्षियोंने उन्हें आनन्दयुक्त किया ॥३६॥
अथानन्तर क्रोधसे युक्त, महाबलसे सहित, वेगवान् एवं महादावानलके समान प्रचण्ड आकृतिको धारण करनेवाला रावण उनके सामने चला ॥३७।। आकाशमें स्थित गन्धवों और अप्सराओंने दोनों सेनाओंमें रहनेवाले सुभटोंके ऊपर बार-बार फूलोंकी वर्षा की ॥३८॥ पैदल सैनिकोंके समूह जिनकी चारों ओरसे रक्षा कर रहे थे, चतुर महावत जिन्हें चला रहे थे तथा जो अञ्जनगिरिके समान विशाल आकारसे युक्त थे ऐसे मदोन्मत्त हाथी मद भरा रहे थे ।।३।। सूर्यके रथके समान जिनके आकार थे, जिनमें चञ्चल घोड़े जुते हुए थे, जो सारथियोंसे सहित थे, जिनसे विशाल शब्द निकल रहा था तथा जो तीव्र वेगसे सहित थे ऐसे रथ आगे बढ़े जा रहे थे ॥४०॥ जो अत्यधिक हर्षसे युक्त थे, जिनके शस्त्र चमक रहे थे, तथा जिन्होंने अपने अण्डके झुण्ड बना रक्खे थे ऐसे गर्वीले पैदल सैनिक रणभूमिमें उछलते जा रहे थे ॥४१॥
१. शैत-म० । २. संध्यासक्तां जनांगाभसुमित्राजो म० । Jain Education International
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